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________________ द्रव्यानुयोग-(१) ६. रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थितिप्र. भन्ते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक सागरोपम की। प्र. भन्ते ! रलप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की। ( २९० ।। रयणप्पभापुढविनेरइयाणं ठिईप. रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई। उक्कोसेण सागरोवमं। प. अपज्जत्तय-रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। उक्कोसेण सागरोवमं अंतोमुहत्तूण। -पण्ण.प.४, सु.३३६ ७. रयणप्पभाएपुढवीए अत्येगइए नेरइयाणं ठिई१. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १, सु. २९ २. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. २ सु.८ ३. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तिण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.३, सु.१३ ४. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाण चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. ४, सु.१० ५. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. ५, सु. १४ ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छ पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.६, सु.९ ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.७, सु.१२ ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं । अट्ठ पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.८,सु.१० ९. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं नव पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.९, सु.१२ १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १०, सु.१० ११. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. ११, सु.८ १२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम. १२, सु. १२ ७. रत्नप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति१. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। २. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति दो पल्योपम की कही गई है। ३. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। ४. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है। ५. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति पांच पल्योपम की कही गई है। ६. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति छह पल्योपम की कही गई है। ७. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है। ८. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति आठ पल्योपम की कही गई है। ९. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति नौ पल्योपम की कही गई है। १०. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति दस पल्योपम की कही गई है। ११. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति ग्यारह पल्योपम की कही गई है। १२. इस रलप्रभा पृथ्वी के कतिपय नैरयिकों की स्थिति बारह - पल्योपम की कही गई है। १. (क) अणु.कालदारे सु.३८३/२ (ख) उत्त.अ.३६,गा.१६० (ग) जीवा.पडि.३,उ.२,सु.९० (घ) ठाणं.अ.१०.सु.७५७/२ (ङ) सम.सम.१०,सु.९,(ज.) २. सम.सम.१,सु.२७(उ.) ३. अणु.कालदारे सु.३८३/२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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