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________________ स्थिति अध्ययन प. मणुस्स णपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण पुवकोडी। धम्मचरणं पडुच्च-जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण देसूणा पुव्वकोडी। कम्मभूमग भरहेरवय पुवविदेह-अवरविदेह मणुस्सणपुंसगस्स वि तहेव। प. अकम्मभूमग मणुस्सणपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जम्मणं पडुच्च-जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं, साहरणं पडुच्च-जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण देसूणा पुव्वकोडी। एवं अंतरदीवगाणं। -जीवा. पडि.२, सु.५९(१) २८९ प्र. भन्ते ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि। कर्मभूमिक भरत, एरबत, पूर्वविदेह, पश्चिमविदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी इसी प्रकार कहनी चाहिए। प्र. भन्ते ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितनी कही . गई है? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त। संहरण की अपेक्षा-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि। इसी प्रकार अन्तर्वीपिक मनुष्य नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए। सामान्यतः नैरयिकों की स्थितिप्र. भन्ते ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की। ५. ओहेण नेरइयाणं ठिई प. नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। प. अपज्जत्तयनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। --पण्ण प.४, सु.३३५ प. पढमसमयनेरइयस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगं समयं ठिई पण्णत्ता। एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एगं समय। प्र. भन्ते ! प्रथम समय नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! (जघन्य और उत्कृष्ट) एक समय की स्थिति कही गई है। इसी प्रकार प्रथम समय के सभी नैरयिकों की स्थिति एक समय की है। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति एक समय कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। प. अपढमसमयनेरइयस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण दस वाससहस्साई समयूणाई। उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई। -जीवा. पडि.७, सु. २२६ १. (क) अणु.कालदारे सु.३८३/१ (ख) जीवा. पडि.१,सु.३२ (ग) जीवा. पडि.३,उ.२,सु.१०१ (घ) जीवा. पडि.३, उ.२, सु.२०६ (ङ) जीवा.पडि ६,सु.२२५ (च) विया.स. १ उ.१,सु.६/१ (छ) विया.स.११,उ.११,सु.१८ (ज) सम.सु.१५१(१)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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