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________________ २७८ ९. कलमसूराईणं जोणीणं संठिई पलवर्ण प. अह भते ! कल मसूर तिल मुग्ग-मास-निष्फाव कुलत्थ-आलिसंग सतीणं पतिमंधगाणं एएसि णं थण्णाण कोट्ठाउत्तानं पल्उत्ताणं जाब पिहिया णं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराई, तेणं परं जोणी पमिलायइ, जाव तेण परं जोणीवोच्छेए पण्णत्ते' | १०. आयसीआईणं जोणीणं संठिई परूवणं प. अह भंते ! अयसि - कुसुंभ-कोद्दव- कंगु-रालग-वरट्टकोसग सण- सरिसव-मूलगबीयाणं एएसि णं घण्णाण कोटवाउत्ताणं पलाउत्तानं जाव पिहियाणं केवइयं काल जोणी संचिट्ठइ ? उ. गोयमा ! जहणणे अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं सत्त संबच्छराई - ठाणं, अ. ५, उ. ३, सु. ४५९ तेणें पर जोणी पमिलाय जाब तेण पर जोणीवोच्छेए पण्णत्ते २ । -ठाणं, अ. ७, सु. ५७२ ११. अट्ठविहे जोणिसंगहे अट्ठविहे जोणिसंग पण्णत्ते, तं जहा १. अंडजा, २ पोतजा, ३. जराउजा, ४. रसजा, ५. संसेदगा, ६. सम्मुच्छिमा ७. उब्निया ८. उबवाइया - ठाणं, अ. ८, सु. ५९५ १२. थलयर - जलयरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिय जीवाणं जोणी संगह पत्रवर्ण प. भुवगपरिसप्पधलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते! कदविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! तिविहे जोणिसंग पण्णत्ते तं जहा " १. अंडया, २. पोयया, ३ . संमुच्छिमा उरगपरिसप्पधलयरपंचिदिय-तिरिक्खजोणियाण वि एवं चेव । प. चउपयथलयर-पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! कवि जोणीसंग पण्णत्ते, उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. जराडया (पोया) २. सम्मुच्चिङमा य जलयर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं जहा भुयगपरिसप्पाणं । १. विया. स. ६, उ. ७, सु. २ २. विया. स. ६, उ. ७, सु. ३ - जीवा. पडि. ३, उ. १, सु. ९७ (२) ९. कलमसूरादि की योनियों की संस्थिति का प्ररूपण ? प्र. भन्ते मटर मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निष्पाव-सेम, कुलदी चवला, तूवर तथा काला चना-इन अन्नों को कोठे, पल्य, मचान और माल्य में डालकर उनके द्वारदेश को ढक देने, यावत् मिट्टी से मुद्रित कर देने पर उनकी योनि कितने काल तक रहती है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट पांच वर्ष तक रहती है। द्रव्यानुयोग - (१) उसके बाद वह म्लान हो जाती है यावत् योनि का विच्छेद हो जाता है। १०. अलसी आदि की योनियों की संस्थिति का प्ररूपण प्र. भन्ते अलसी, कुसुम्भ, कोदब, कंगु, राल, गोलचना, कोदव की एक जाति, सन, सर्षप मूलकबीज ये धान्य जो कोष्ठगुप्त, पल्यगुप्त यावत् पिहित है, उनकी योनि कितने काल तक रहती है ? उ. गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः सात वर्ष तक रहती है। उसके बाद योनि म्लान हो जाती है यावत् योनि का व्युच्छेद हो जाता है। ११. आठ प्रकार का योनि संग्रह योनि संग्रह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा १. अण्डज, २. पोतज, ३. जरायुज, ४. रसज, ५. संस्वेदज, ६. सम्मूर्च्छिम ७. उद्भिज्ज, ८. औपपातिक । १२. स्थलचर - जलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के योनि-संग्रह का प्ररूपण प्र. भंते ! भुजपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का कितने प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है ? उ. गौतम ! तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा गया है, यथा१. अण्डज, २. पोतज, ३. सम्मूर्च्छिम | उरपरिसर्पस्थलचर पंचेंद्रिय तिर्यक्योनिकों का कथन भी इसी प्रकार है। प्र. भंते ! चतुष्पदस्थलचर पंचेद्रिय तिर्यक्योनिकों का कितने प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है ? ३. ठाणं, अ. ७ सु. ५४३ यथा उ. गौतम ! इनका योनिसंग्रह दो प्रकार का कहा गया है, १. जरायुज (पोतज) २. सम्मूर्च्छिम जलचर पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के योनि संग्रह का कथन भुजगपरिसर्प के समान है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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