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________________ योनि अध्ययन दं. २० ख. गव्यचक्कंतिय-पंचेदिय तिरिक्खजोणियाणं, ६. २१ ख. तिय-मणुस्साण व नो संबुडाजोणी, नो वियाजोणी संहवियहाजोणी । " द. २२-२४ वाणमंतर जोइसिय- वैमाणियाणं जहा नेरइयाणं । ६. संवुडाइजोणियजीवाणं अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भंते ! जीवाणं संवुडजोणियाणं, वियडजोणियाण संबुडवियडजोणियाण, अजोणियाण य " कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोवमा १ सव्वत्थोवा जीवा संबुडवियडजोणिया, . २. वियडजोणिया असंखेज्जगुणा, ३. . अजोणिया अनंतगुणा, ४. संवुडजोणिया अनंतगुणा । - पण्ण प. ९, सु. ७६४-७७१ ७. मणुवाणं तओ जोणिओ प. कइविहाणं भंते ! ( मणुयाणं) जोणी पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा २ १. कुम्मुण्णया, २. संखावत्ता, ३. वंसीपत्ता । १. कुम्पुण्णया में जोणी उत्तमपुरिसमाउण - पण्ण. प. ९, सु. ७७२ कुम्मुण्णयाए णं जोणीए उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमंति, तं जहा १. अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा । संखावत्ताणं जोणी इत्थिरयणस्स संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमंति, चयंति, उवचयंति, नो चेव णं निप्फज्जति । ३. वंसीपत्ता णं जोणी पिणस्स सीपत्ताणं जोणीए पिहुजणे गब्भे वक्कमंति। १. विया. स. ६, उ. ७, सु. १ - पण्ण प. ९, सु. ७७३ ८. सालीआईणं जोणीण संठिई परुवर्ण प. अह भंते ! सालीन वीहीणं, गोधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं, एएसि णं धण्णाणं धण्णाण कोट्टाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं, मंचाउत्ताणं, मालाउत्ताणं, ओलित्ताणं, लित्ताणं, लंछियाणं, मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ? उ. गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि संवच्छराई, तेण परं जोणी पमिलायइ, तेण पर जोणी पविद्धंसइ, तेण परं जोणी विद्धंसइ, तेण पर बीए अबीए भवद्द पण्णत्ते' । तेण पर जोणीवोच्छेए - ठाणं, अ. ३, उ. १, सु. १५४ २७७ दं. २० ख. गर्भज पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की और दं. २१ ख. गर्भज मनुष्यों की संवृत और विवृत योनि नहीं है, किन्तु संवृतविवृत योनि है। दं. २२- २४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की योनि नैरयिकों के जैसी है। ६. संकृतादि योनिक जीवों का अल्पबहुत्व प्र. भन्ते । इन संधूतयोनिक जीवों, विधूतयोनिक जीवों, संवृत विद्युतयोनिक जीवों तथा अयोनिक जीवों में कौन किनसे अल्प पावत विशेषाधिक है? उ. गौतम १ सबसे अल्पसंवृतविवृत्तयोनिक जीव है, २. ( उनसे) विवृतयोनिक जीव असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) अयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं, ४. ( उनसे भी संवृतयौनिक जीव अनन्तगुणे है। ७. मनुष्यों की तीन प्रकार की योनियां प्र. भन्ते ! कितने प्रकार की (मनुष्य) योनियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! योनियां तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा१. कूर्मोन्नता, २. संखावत, ३. वंशीपत्रा १. कूर्मोन्नता योनि उत्तमपुरुषों की माताओं की होती है। कूर्मोन्नता योनि में उत्तमपुरुष गर्भ में उत्पन्न होते हैं, यथा १. अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव । २. शंखावर्त्ता योनि स्त्रीरत्न की होती है। शंखावर्त्ता योनि में बहुत से जीव और पुद्गल आते हैं, गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं, सामान्य और विशेषरूप में उनकी वृद्धि होती है किन्तु निष्पत्ति नहीं होती है। ३. वंशीपत्रा योनि में सामान्य जन मनुष्य उत्पन्न होते हैं, वंशीपत्रा योनि में सामान्य जीव गर्भ में आते हैं। ८. शालीआदि की योनियों की संस्थिति का प्ररूपण प्र. भन्ते ! शाली, ब्रीहि, गेहूँ, जौ तथा यवयव अन्नों को कोठे, पल्य, मचान और माल्य में डालकर उनके द्वारदेश को ढक देने, लीप देने, चारों ओर से लीप देने, रेखाओं से लांछित कर देने तथा मिट्टी से मुद्रित कर देने पर उनकी योनि (उत्पादक शक्ति) कितने काल तक रहती है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन वर्ष तक रहती है। उसके बाद योनि म्लान हो जाती है, विध्वस्त हो जाती है. क्षीण हो जाती है, बीज - अबीज हो जाता है और उस योनि का विच्छेद हो जाता है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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