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________________ प्रथम-अप्रथम अध्ययन दं.१-२४. एवं चउवीसं दंडगा भाणियव्वा। पुहत्तेण वि एवं चेव। कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा विएगत्तेण पुहत्तेण एवं चेव। दं.१-२४. एवं चउवीसं दंडगा भाणियव्वा। णवरं-जस्स जा लेस्सा अत्थि। प. अलेसे णं भंते !जीवे अलेसीभावेणं किं पढमे,अपढमे? उ. गोयमा ! पढमे, नो अपढमे, मणुस्से, सिद्धे वि एवं चेव। एवं पुहत्तेण वि। ६. दिट्ठी दारंप. सम्मदिट्ठीए णं भंते ! जीवे सम्मदिट्ठीए भावेणं किं पढमे, अपढमे? उ. गोयमा ! सिय पढमे, सिय अपढमे। दं.१-११,१७-२४.एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए, सिद्धे पढमे, नो अपढमे। पुहत्तिया जीवा पढमा वि, अपढमा वि। दं.१-११,१७-२४. एवं एगिदियवजंजाव वेमाणिया, । २६५ ) दं. १-२४. इसी प्रकार चौबीस दण्डक का कथन करना चाहिए। बहुवचन का कथन भी इसी प्रकार है। इसी प्रकार कृष्ण लेश्या से शुक्ल लेश्या पर्यन्त एक अनेक की अपेक्षा जीवों का कथन करना चाहिए। दं.१-२४. चौबीस दण्डकों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-जिस दण्डक के जो लेश्या हो, वह कहनी चाहिए। प्र. भन्ते ! अलेश्यी जीव अलेश्यी भाव से प्रथम है या अप्रथम है? उ. गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है। मनुष्य और सिद्ध भी इसी प्रकार है। बहुवचन का कथन भी इसी प्रकार है। ६. दृष्टि द्वारप्र. भन्ते ! सम्यग्दृष्टि जीव, सम्यग्दृष्टिभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है? उ. गौतम ! वह कदाचित् प्रथम है और कदाचित् अप्रथम है। दं.१-११,१७-२४. इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं है। बहुवचन की अपेक्षा जीव प्रथम भी है और अप्रथम भी है। दं.१-११,१७-२४. इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिकों पर्यन्त का कथन करना चाहिए। (बहुवचन की अपेक्षा) सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। प्र. भन्ते ! मिथ्यादृष्टि जीव, मिथ्यादृष्टि भाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है? . उ. गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यंत का कथन करना चाहिए। बहुवचन का कथन भी इसी प्रकार है। प्र. भन्ते ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सम्यगमिथ्यादृष्टि भाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है? उ. गौतम ! कदाचित् प्रथम है, कदाचित् अप्रथम है। बहुवचन की अपेक्षा जीव प्रथम भी हैं और अप्रथम भी हैं। दं.१-११,२०-२४. एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर (शेष दण्डक) वैमानिकों पर्यन्त इसी प्रकार है। ७. संयत द्वारप्र. भन्ते ! संयत जीव संयत भाव से प्रथम है या अप्रथम है? उ. गौतम ! कदाचित् प्रथम है, कदाचित् अप्रथम है। : मनुष्य का कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। बहुवचन की अपेक्षा भी इसी प्रकार है। प्र. भन्ते ! असंयत जीव असंयत भाव से प्रथम है या अप्रथम है? सिद्धा पढमा, नो अपढमा। प. मिच्छादिट्ठिएणं भंते ! जीवे मिच्छादिट्ठिए भावेणं कि पढमे, अपढमे? उ. गोयमा ! नो पढमे, अपढमे। दं.१-२४.एवं नेरइए जाव वेमाणिए। पुहत्तेण विएवं चेव। प. सम्मामिच्छादिट्ठिए णं भंते ! जीवे सम्मामिच्छादिट्ठिए भावेणं किं पढमे, अपढमे? उ. गोयमा ! सिय पढमे, सिय अपढमे। पुहत्तिया जीवा पढमा वि अपढमा वि। दं.१-११,२०-२४. एवं एगिंदिय-विगलिंदयवज्जं जाव वेमाणिया। ७. संजय दारंप. संजए णं भंते ! जीवे संजयभावेणं किं पढमे, अपढमे ? उ. गोयमा ! सिय पढमे, सिय अपढमे। एवं मणुस्से वि। पुहत्तेण वि एवं चेव। प. असंजए णं भंते ! जीवे असंजयभावेणं किं पढमे, अपढमे? उ. गोयमा ! नो पढमे, अपढमे। उ. गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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