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________________ २०४ (५) संठाण दारं प इमीसे णं भंते! रयणयभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरगा किंसंठिया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. भवधारणिज्जा य २. उत्तरवेउव्विया य । १. तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पण्णत्ता | २. तत्थ णं जे ते उत्तरवेउब्बिया ते वि हुंडसठिया पण्णत्ता । प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए जाव हुंडसंठाणे चट्टमाणा नेरइया कि कोहोवउता जाय लोभोवउत्ता ? उ. गोयमा ! सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा । (६) लेखा दारं प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कइ साओ पण्णत्ताओ ? उ. गोयमा ! एक्का काउलेसा पण्णत्ता । प. इमीसे णं भंते ! रणप्पभाए पुढवीए जाव काउलेस्साए यट्टमाना नेरइया किं कोहोवउत्ता जाव लोभोवउत्ता ? उ. गोयमा ! सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा । (७) दिहि दारं प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ? 3 उ. गोयमा ! तिण्णि वि। प. इमीसे णं भंते! रयणयभाए पुढवीए सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया कि कोहोबत्ता जाव लोभोवउत्ता ? उ. गोयमा ! सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा । एवं मिच्छदंसणे वि सम्मामिच्छददंसणे असीति भंगा (८) नाण दारं .प. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं णाणी अण्णाणी ? उ. गोयमा । णाणी वि. अण्णाणी वि तिण्णि नाणा वि नियमा तिष्णि अण्णाणाई भयणाए। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पहाए पुढवीए जाव आभिणिबोहियणाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता जाव लोभोवउत्ता ? उ. गोयमा सत्तावीस भंगा भाणियव्या एवं तिष्णि णाणाई तिणि य अण्णाणाई भाणियव्वाई। द्रव्यानुयोग - (१) (५) संस्थान द्वार प्र. भंते! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले कहे गए हैं ? उ. गौतम ! उनका संस्थान दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. भवधारणीय २. उत्तरवैक्रिय । 9. उनमें से जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हुण्डक संस्थान वाले कहे गए हैं, २. उनमें से उत्तरबैकिय शरीर वाले हैं, वे भी हुण्डक संस्थान वाले कहे गए हैं। प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डक संस्थान में प्रवर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोमोपयुक्त है? उ. गौतम! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। (६) लेश्या द्वार प्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएं कही गई हैं ? उ. गौतम ! उनमें केवल एक कापोतलेश्या कही गई है। प्र. भंते ! इन रत्नप्रभा पृथ्वी में यावत् कापोतलेश्या में प्रवर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोभोपयुक्त हैं ? उ. गौतम ! इनके भी सत्ताईस भंग कहने चाहिए। (७) दृष्टि द्वार प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिध्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि है? + उ. गौतम वे तीनों दृष्टि वाले हैं। प्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले सम्यग्दृष्टिनारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोभोपयुक्त हैं ? उ. गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि सत्ताईस भंग कहने चाहिए। इस प्रकार मिध्यादृष्टि के भी २७ भंग कहने चाहिए। सम्यग्मिथ्यादृष्टि के अस्सी भंग होते हैं। (८) ज्ञान द्वार प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं उनमें नियमतः तीन ज्ञान होते हैं, जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं। प्र. भंते! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में यावत् आभिनिबोधिकज्ञान में प्रवर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोभोपयुक्त है? उ. गौतम ! क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। इस प्रकार तीनों ज्ञान और तीनों अज्ञान वालों में २७-२७ भंग कहने चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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