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________________ जीव अध्ययन - २०३ दुप्पएसाहिया जहन्निया ओगाहणा जाव असंखेज्जपएसाहिया जहन्निया ओगाहणा, तप्पाउग्गुक्कोसिया ओगाहणा। द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, तथा उनके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना। (इस प्रकार असंख्यात अवगाहना स्थान होते हैं।) प्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोभोपयुक्त हैं ? प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगभेगसि निरयावासंसि जहन्नियाए ओगाहणाए वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता जाव लोभोवउत्ता? । उ. गोयमा ! असीति भंगा भाणियव्वा जाव संखेज्जपएसाहिया जहन्निया ओगाहणा, असंखेज्जपएसाहियाए जहन्नियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं तप्पाउग्गुक्कोसियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं नेरइयाणं दोसु वि सत्तावीसं भंगा। (३) सरीरदारंप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिण्णि सरीरगा पण्णत्ता,तं जहा १.वेउव्विए, २.तेयए ३. कम्मए। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि वेउब्वियसरीरे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता जाव लोभोवउत्ता? उ. गोयमा ! सत्तावीसं भंगा भाणियव्या। एएणं गमेणं तिणि सरीराभाणियव्वा। उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना से संख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना पर्यन्त नैरयिकों में अस्सी भंग कहने चाहिए। असंख्यातप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना में विद्यमान से लेकर योग्य उत्कृष्ट अवगाहना में विद्यमान नारकों तक सत्ताईस भंग कहने चाहिए। (३) शरीर द्वारप्र. भंते ! इस रलप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में रहने वाले नारकों के कितने शरीर कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गए हैं, यथा १.वैक्रिय २. तैजस् ३. कार्मण। प्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले वैक्रियशरीरी नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लाभोपयुक्त हैं? (४) संघयण दारंप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं सरीरगा किं संघयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी, नेवऽट्ठी, नेव छिरा, नेवण्हारूणि, उ. गौतम ! उनके (क्रोधोपयुक्त आदि) २७ भंग कहने चाहिए। ___ इस प्रकार तैजस् और कार्मण सहित तीनों शरीरों के सम्बन्ध में यह आलापक कहना चाहिए। (४) संहनन द्वारप्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीरों का कौन-सा संहनन कहा गया है? उ. गौतम ! छह संहननों में से कोई भी संहनन न होने से संहनन रहित है। क्योंकि उनके शरीर में हड्डी, शिरा (नस) और स्नायु नहीं होती। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त अप्रिय अशुभ अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल उनके शरीर संघातरूप में परिणत होते हैं। - प्र. भंते ! इस रलप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छह संहननों में से जिनके एक भी संहनन नहीं है वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं यावत् लोभोपयुक्त हैं ? उ. गौतम ! इनके सत्ताईस भंग कहने चाहिए। जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुण्णा अमणामा ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि छण्हं संघयणाणं असंघयणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता जाव लोभोवउत्ता? उ. गोयमा ! सत्तावीसंभंगा भाणियव्या।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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