SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "णेरइया णो सव्वे समवेयणा?" उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सण्णिभूया य २. असण्णिभूया य। १. तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं महावेयणतरागा। २. तत्थ णंजे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा। से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "णेरइया नो सव्वे समवेयणा।" (६) किरिया दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "णेरइया णो सव्वे समकिरिया?" उ. गोयमा !णेरइया तिविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सम्मदिट्ठी . २. मिच्छादिट्ठी ३. सम्मामिच्छादिट्ठी। १. तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जति, तं जहा१. आरंभिया, २. परिग्गहिया ३. मायावत्तिया, ४. अपच्चक्खाणकिरिया। २. तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्ठी तेसि णं पंच किरियाओ कज्जंति,तं जहा१. आरंभिया २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया, ४. अपच्चक्खाणकिरिया ५. मिच्छादसणवत्तिया। ३. सम्ममिच्छादिट्ठी विएवं चेव से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"णेरइया णो सव्वे समकिरिया।" (७) आउ दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समाउया? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “णेरइया णो सव्वे समाउया?" उ. गोयमा ! णेरइया चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा १. अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा, द्रव्यानुयोग-(१)] प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___"सभी नारक समान वेदना वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. संज्ञीभूत, २. असंज्ञीभूत। १. उनमें से जो संज्ञीभूत हैं, वे महान् वेदना वाले हैं, २. उनमें से जो असंज्ञीभूत हैं, वे अल्प वेदना वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "सभी नारक समान वेदना वाले नहीं हैं।" (६) क्रिया द्वारप्र. भन्ते ! क्या सभी नारक समान क्रिया वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी नारक समान क्रिया वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नारक तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि, ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। १. उनमें से जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे चार क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया। २. उनमें से जो मिथ्यादृष्टि हैं, वे नियमतः पांच क्रियाएँ करते हैं- यथा१. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया, ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया। ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी इसी प्रकार पांच क्रियाएं करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी नारक समान क्रिया वाले नहीं हैं।" (७) आयु द्वारप्र. भन्ते ! क्या सभी नारक समान आयु वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___“सभी नारक समान आयु वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कई नारक समान आयु वाले हैं और एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं, २. कई नारक समान आयु वाले हैं किन्तु पहले पीछे उत्पन्न २. अत्थेगइया समाउया विसमोववण्णगा, ३. अत्थेगइया विसमाउया समोववण्णगा, ३. कई नारक विषम आयु वाले हैं किन्तु एक साथ उत्पन्न हुए हैं, १. विया. स. १, उ. २, सु. ५/५ २. विया. स. १, उ. २, सु. ५/६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy