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________________ जीव अध्ययन (२) कम्म दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समकम्मा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ___“णेरइया णो सव्वे समकम्मा?" उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १.पुव्वोववण्णगा य, २. पच्छोववण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा, ते णं अप्पकम्मतरागा। २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा,तेणं महाकम्मतरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "णेरइया णो सव्वे समकम्मा। (३) वण्ण दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समवण्णा ? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ___“णेरइया णो सव्वे समवण्णा? उ. गोयमा !णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पुव्वोववण्णगा य २. पच्छोववण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्योववण्णगा,ते विसुद्धवण्णतरागा। । १९५ ) (२) कर्म द्वार प्र. भन्ते ! क्या सभी नारक समान कर्म वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि__"सभी नारक समान कर्म वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नारक दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा १. पूर्वोपपन्नक, २. पश्चादुपपन्नक। १. उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अल्प कर्म वाले हैं २. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "सभी नारक समान कर्म वाले नहीं हैं।" (३) वर्ण द्वारप्र. भन्ते ! क्या सभी नारक समान वर्ण वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी नारक समान वर्ण वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पूर्वोपपन्नक, २. पश्चादुपपन्नक। १. उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं वे अधिक विशुद्ध वर्ण थपणहार २. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं। २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा, ते णं अविसुद्धवण्ण तरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "णेरइया णो सव्वे समवण्णा।" (४) लेस्सा दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समलेसा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'णेरइया णो सव्वे समलेसा? उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पुव्वोववण्णगा य, २. पच्छोववण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं विसुद्धलेसतरागा। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "सभी नारक समान वर्ण वाले नहीं हैं।" (४) लेश्या द्वारप्र. भन्ते ! क्या नैरयिक सभी समान लेश्या वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि “नैरयिक सभी समान लेश्या वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पूर्वोपपन्नक, २. पश्चादुपपन्नक। १. उनमें से जो पूर्वोत्पन्न हैं, वे अधिक विशुद्धतर लेश्या वाले हैं। २. उनमें से जो पश्चात् उत्पन्न होने वाले हैं वे अविशुद्ध लेश्या वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा गया है कि "सभी नैरयिक समान लेश्या वाले नहीं हैं।" (५) वेदना द्वारप्र. भन्ते ! क्या सभी नारक समान वेदना वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा, ते णं अविसुद्धलेस तरागा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ “णेरइया णो सव्वे समलेसा।" (५) वेयणा दारंप. णेरइया णं भंते ! सव्वे समवेयणा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। १. विया. स. १, उ. २, सु. ५/२ २. विया. स. १, उ.२, सु. ५/३ ३. विया. स. १, उ. २, सु. ५/४
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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