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________________ १९४ द्रव्यानुयोग-(१) ) प. (१६) सिया भंते ! पुढविकाइया अप्पासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा, अप्पनिज्जरा? उ. हंता,गोयमा ! सिया।। दं.१३-२१ एवं जाव मणुस्सा। दं. २२-२४ वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा। -विया. स. १९, उ. ४, सु. १-२२ ९८. चउवीसदंडएसुसमाहाराइ सत्तदाराणं परूवणंगाहा-१.आहार-सम-सरीरा-उस्सास २.कम्म ३. वण्ण ४.लेस्सासु। ५.समवेदण ६.समकिरिया ७.समाउया-चेव-बोधव्वा॥ (१) आहार-सरीर-उस्सास-दारं प. दं. १.णेरइया णं भंते ! सव्वे समाहारा सव्वे समसरीरा ___ सव्वे समुस्सासणिस्सासा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ ‘णेरइया णो सव्वे समाहारा णो सव्वे समसरीरा णो सब्वे समुस्सासणिस्सासा?' प. (१६) भंते ! क्या पृथ्वीकायिक अल्पानव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा (पर्यन्त सोलह भंगों) वाले हैं ? उ. हां, गौतम ! वे कदाचित् सोलह भंगों वाले हैं। दं. १३-२१. इसी प्रकार मनुष्यों पर्यन्त जानना चाहिए। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर-ज्योतिष्क एवं वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान जानना चाहिए। ९८. चौबीस दंडकों में समाहारादि सात द्वारों का प्ररूपणगाथार्थ-१. समाहार सम-शरीर और समश्वासोच्छ्वास २. कर्म ३. वर्ण, ४. लेश्या, ५. समवेदना, ६. समक्रिया तथा ७. समायुष्क इन सात द्वारों का चौबीस दंडकवर्ती जीवों में वर्णन करते हैं। (१) आहार-शरीर-उच्छ्वास द्वारप्र. दं.१. भन्ते ! क्या सभी नारक समान आहार वाले हैं, सभी समान शरीर वाले हैं तथा सभी समान उच्छवास-निःश्वास वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी नैरयिक समान आहार वाले नहीं हैं,सभी समान शरीर वाले नहीं हैं और सभी समान उच्छ्वास निःश्वास वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. महाशरीर वाले २. अल्पशरीर वाले। १. उनमें से जो महाशरीर वाले नारक हैं, वे बहुत अधिक पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों को परिणमाते हैं, बहुत अधिक पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और बहुत अधिक पुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं। वे बार-बार आहार करते हैं, बार-बार पुद्गलों को परिणमाते हैं, बार-बार उच्छ्वसन करते हैं, बार-बार निःश्वसन करते हैं। २. उनमें से जो अल्प शरीर वाले नारक हैं, वे अल्पपुद्गलों का आहार करते हैं, अल्प पुद्गलों को परिणमाते हैं, अल्प पुद्गलों का उच्छ्वास लेते हैं और अल्प पुद्गलों का निःश्वास छोड़ते हैं। वे कदाचित आहार करते हैं, कदाचित पुद्गलों को परिणमाते हैं, कदाचित् उच्छ्वसन करते हैं और कदाचित् नि-श्वसन करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'सभी नारक समान आहार वाले नहीं हैं, सभी समान शरीर वाले नहीं हैं और सभी समान उच्छ्वास निःश्वास वाले नहीं हैं।" उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.महासरीराय २.अप्पसरीराय। १. तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले ऊससंति, बहुतराए पोग्गले णीससंति अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति, अभिक्खणं णीससंति। २. तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले ऊससंति,अप्पतराए पोग्गले णीससंति। आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च ऊससंति, आहच्च णीससंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"णेरइया णो सब्वे समाहारा, णो सव्वे सम सरीरा णो सव्वे समुस्सास णिस्सासा।"१ १. (क) विया. स. १, उ.२, सु. ५/१ (ख) प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केरिसया पोग्गला उसासत्ताए परिणंमति? उ. गोयमा ! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा ते तेसिं उसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसु वि। -जीवा पडि. ३, सु. ८८(१)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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