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________________ जीव अध्ययन प. (७) सिय भंते ! नेरइया महासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा, महानिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (८) सिय भंते ! नेरइया महासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा, अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समझें। प. (९) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महामनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१०) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, महाकिरिया, महावेयणा,अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (११) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, महाकिरिया, अप्पवेयणा, महानिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१२) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, महाकिरिया, अप्पवेयणा, अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१३) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, अप्पकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१४) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, अप्पकिरिया, महावेयणा, अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१५) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा, महानिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. (१६) सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा, अप्पकिरिया, अप्पवेयणा,अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। एए सोलस भंगा। प. दं. २. सिय भंते ! असुरकुमारा महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। एवं चउत्थो भंगो भाणियव्वो, - १९३) प. (७) भंते ! क्या नैरयिक महानव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (८) भंते ! क्या नैरयिक महानव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (९) भंते ! क्या नैरयिक अल्पानव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१०) भंते ! क्या नैरयिक अल्पाम्नव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (११) भंते ! क्या नैरयिक अल्पाम्नव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१२) भंते ! क्या नैरयिक अल्पानव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१३) भंते ! क्या नैरयिक अल्पानव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१४) भंते ! क्या नैरयिक अल्पासव, अल्पक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१५) भंते ! क्या नैरयिक अल्पाम्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना ___और महानिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (१६) भंते ! क्या नैरयिक अल्पासव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। यह सोलह भंग (विकल्प) हैं। प. दं.२. भंते ! क्या असुरकुमार महानव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस प्रकार यहां (पूर्वोक्त सोलह भंगों में से) केवल चतुर्थ भंग कहना चाहिए। शेष पन्द्रह भंगों का निषेध करना चाहिए। दं.३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त समझना चाहिए। प. दं. १२-(१). भंते ! क्या पृथ्वीकायिक जीव महानव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? उ. हां, गौतम ! कदाचित् होते हैं। (२-१५) इसी प्रकार यावत् सेसा पन्नरस भंगा खोडेयव्वा। दं.३-११ एवं जाव थणियकुमारा। प. दं. १२-(१). सिय भंते ! पुढविकाइया महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा? उ. हंता, गोयमा ! सिया। (२-१५) एवं जाव
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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