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________________ १९२ जाव वैमाणियाणं जस्स जड़ लेसाओ। एए अट्ठ, चउवीसदंडया ।' -ठाणं, अ. १, सु. ४१ (१-८) ९६. चडवीसदंडग जीवाणं अनंतर परंपरोववन्नगाइ दस पगारा दं. १. दसविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा १. अणंतरोववण्णा, २ . परंपरोववण्णा, ३. अनंतरावगाढा, ४. परंपरावगाढा, ५. अनंतराहारगा, ६. परंपराहारगा ७. अणंतरपज्जत्ता, ८. परंपरपञ्जता, ९. चरिमा, १०. अचरिमा दं. २ २४. एवं णिरंतरं जाव वेमाणिया । -ठाणं, अ. १०, सु. ७५७ ९७. चउवीसदंडएसु महासवाइचउपयाणं परूवणं प. दं. (१) सिय भंते! नेरइया महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । प. (२) सिय भंते ! नेरइया महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, अप्पनिज्जरा ? उ. हंता गोयमा ! सिया प. (३) सिय भते नेरइया महासया महाकिरिया, ! अप्पवेयणा, महानिज्जरा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । प. (४) सिय भंते ! मेरइया महासवा, महाकिरिया, अप्यवेषणा अप्पनिज्जरा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । प. (५) सिय भंते! नेरइया महासवा, अप्यकिरिया, महावेयणा, महानिज्जरा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । प. (६) सिय भते । नेरइया महासया, अप्यकिरिया, महावेयणा, अन्यनिज्जरा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । १. प्रथम वर्गणा जीव प्रज्ञापना अध्ययन के प्रारंभ में है। द्रव्यानुयोग - (१) इसी प्रकार वैमानिकों पर्यंत जिनमें जितनी लेश्याएं हैं उनक अनुपात से कृष्ण पाक्षिक और शुक्ल पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक -एक है। इन आठ प्रकारों से चौवीस दंडकों की वर्गणा का कथन किया गया है। ९६. चौबीस दंडकों के जीवों के अनन्तर परंपरोपपन्नकादि दस प्रकार दं. १. नैरयिक दस प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. अनन्तरोपपन्नक- जिन्हें उत्पन्न हुए एक समय हुआ । २. परम्परोपपन्नक-जिन्हें उत्पन्न हुए दो आदि समय हुए हों। ३. अनन्तरावगाढ - विवक्षित क्षेत्र में अवस्थित होने का प्रथम समय । ४. परम्परावगाढ- विवक्षित क्षेत्र में अवस्थित होने का द्वितीयादि समय । ५. अनन्तराहारक-प्रथम समय के आहारक। ६. परम्पराहारक-दो आदि समयों के आहारक। ७. अनन्तरपर्याप्तक- प्रथम समय के पर्याप्तक । ८. परम्पर पर्याप्तक-दो आदि समयों के पर्याप्तक। ९. चरम - नरकगति में अन्तिम बार उत्पन्न होने वाले । १०. अचरम- जो भविष्य में फिर नरकगति में उत्पन्न होंगे। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डकों के दस-दस प्रकार कहने चाहिए। ९७. चौबीसदंडकों में महानवादि चार पदों का परूपणप. दं. (१) भंते ! क्या नैरयिक जीव महानव महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। 7 प. (२) भंते ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. हां, गौतम हैं। प. (३) भंते ! क्या नैरयिक जीव महास्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (४) भंते! क्या नैरयिक जीव महानव महाक्रिया अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (५) भंते ! क्या नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प. (६) भंते ! क्या नैरयिक महास्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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