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________________ जीव अध्ययन दं.१९. एवं चउरिंदियाण वि, दं. २०-२४. सेसा जहा नेरइया जाव एगा सम्ममिच्छादिट्ठीयाणं वेमाणियाणं वग्गणा। - १९१ ) दं. १९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों की भी वर्गणा एक है, दं. २०-२४. सम्यमिथ्यादृष्टि की वैमानिकों पर्यन्त वर्गणा एक है, शेष जीवों की वर्गणा का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिए। (४) एगा कण्हपक्खियाणं वग्गणा। एगा सुक्कपक्खियाणं वग्गणा। दं.१.एगा कण्हपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा। एगा सुक्कपक्खियाणंणेरइयाणं वग्गणा। दं.२-२४. एवं चउवीसदंडओ भाणियव्यो। (४) कृष्ण-पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। शुक्ल-पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। द.१. कृष्ण-पाक्षिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। शुक्ल-पाक्षिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। दं. २-२४. इसी प्रकार चौवीस दण्डकों में वर्गणा कहनी चाहिए। (५) एगा कण्हलेस्साणं वग्गणा एवं जाव एगा सुक्कलेस्साणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा। एगा णीललेसाणं णेरइयाणं वग्गणा। एगा काउलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा। एवं जस्स जइ लेसाओ, तं जहा भवणवइ-वाणमंतर-पुढवि-आउ-वणस्सइकाइयो य चत्तारि लेसाओ, तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं तिण्णि लेसाओ, पंचिंदिय-तिरिक्खोजोणियाणं-मणुस्साणं छल्लेसाओ, जोइसियाणं एगा तेउलेसा, वेमाणियाणं तिण्णि उवरिमलेसाओ। (६) एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं वग्गणा। एवं-छसुवि लेसासु दो दो पयाणि भाणियव्वाणि। (५) कृष्ण लेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार यावत् शुक्ल लेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है। कृष्ण लेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा एक है। नीललेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा एक है। कापोतलेश्या वाले नैरयिकों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार जिनमें जितनी लेश्याएँ होती हैं उन प्रत्येक की एक-एक वर्गणा जाननी चाहिए, यथाभवनपति, वाणव्यंतर, पृथ्वी, जल और वनस्पतिकायिक जीवों में आदि की चार लेश्याएँ होती हैं। अग्नि, वायु, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में आदि की तीन लेश्याएँ होती हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्यों के छहों लेश्याएं होती हैं। ज्योतिष्क देवों के एक तेजोलेश्या होती है। वैमानिक देवों के अन्तिम तीन लेश्याएँ होती हैं। कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार छहों लेश्याओं में दो-दो पद (भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक) का कथन करना चाहिए। कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले अभवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक वैमानिकों पर्यन्त जिनके जितनी लेश्याएं हैं, उनके अनुपात से सभी दण्डकों में एक-एक वर्गणा कहनी चाहिए। . (७) कृष्णलेश्या वाले सम्यक्दृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार छहों लेश्या वाले वैमानिक पर्यन्त जिन जीवों में जितनी दृष्टियां हैं, उनके अनुपात से उनकी एक-एक वर्गणा कहनी चाहिए। (८) कृष्णलेश्या वाले कृष्ण पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। कृष्णलेश्या वाले शुक्ल पाक्षिक जीवों की वर्गणा एक है। , एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा। एवं जस्स जइ लेसाओ तस्स तइयाओ भाणियव्याओ जाव वेमाणियाणं। (७) एगा कण्हलेसाणं सम्मदिट्ठीयाणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं सम्ममिच्छदिट्ठियाणं वग्गणा। एवं छसुवि लेसासु जाव वेमाणियाणं जेसिं जइ दिट्ठीओ। (८) एगा कण्हलेसाणं कण्हपक्खियाणं वग्गणा। एगा कण्हलेसाणं सुक्कपक्खियाणं वग्गणा। -
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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