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उ. गोयमा ! से जहानामए छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं
घडी, पडेणं पडी, करेणं करी एवामेव गोयमा ! जीवे वि सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिभिंदिय-फासिंदियाई पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले।
से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि।' प. दं.१. नेरइए णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ? उ. गोयमा ! एवं चेव।
दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिए। णवर-जस्स जइ इंदियाइं तस्स तइ वि भाणियव्वाई। प. सिद्धे णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले? उ. गोयमा ! नो पोग्गली, पोग्गले। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"सिद्धे णं नो पोग्गली, पोग्गले?" उ. गोयमा !जीवं पडुच्च।
(द्रव्यानुयोग-(१) ) उ. गौतम ! जैसे कोई पुरुष के पास छत्र हो उसे छत्री, दण्ड हो
उसे दण्डी, घट होने से घटी, पट होने से पटी एवं कर होने से करी कहा जाता है, इसी तरह हे गौतम ! जीव श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, (स्वरूप पुद्गल वाला होने) की अपेक्षा से पुद्गली कहलाता है और जीव की अपेक्षा पुद्गल कहलाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
"जीव पुद्गली भी है और पुद्गल भी है।" प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिक जीव पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् कथन करना चाहिए।
दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-जिस जीव के जितनी इन्द्रियाँ हो उतनी इन्द्रियाँ कहनी चाहिए।
प्र. भंते ! सिद्धजीव पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ? उ. गौतम ! सिद्धजीव पुद्गली नहीं हैं, किन्तु पुद्गल हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'सिद्धजीव पुद्गली नहीं हैं, किन्तु पुद्गल हैं ?" उ. गौतम ! जीव की अपेक्षा सिद्धजीव पुद्गल हैं (किन्तु उनके
इन्द्रियाँ न होने से वे पुद्गली नहीं हैं) इस कारण से गौतम ऐसा कहा जाता है कि'सिद्धजीव पुद्गली नहीं हैं किन्तु पुद्गल है।'
ते तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"सिद्धे नो पोग्गली, पोग्गले।"
-विया. स. ८ उ. १०, सु. ५९-६१ ९६. चउवीसदंडग जीवाणं विविह विवर खिया वग्गणा परूवणं-
(२) एगा भवसिद्धियाणं वग्गणा।
एगा अभवसिद्धियाणं वग्गणा। दं.१.एगा भवसिद्धियाणं नेरइयाणं वग्गणा। एगा अभवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा। दं. २-२४. एवं जाव एगा भवसिद्धियाणं अभवसिद्धि
याणं वेमाणियाणं वग्गणा। (३) १.एगा सम्मदिट्ठीयाणं वग्गणा,
२.एगा मिच्छादिट्ठीयाणं वग्गणा, ३.एगा सम्ममिच्छादिट्ठीयाणं वग्गणा, दं.१.१.एगा सम्मदिट्ठीयाणं णेरइयाणं वग्गणा, २.एगा मिच्छादिट्ठीयाणं णेरइयाणं वग्गणा, ३.एगा सम्ममिच्छादिट्ठीयाणंणेरइयाणं वग्गणा। दं. २-११. एवं एगा असुरकुमाराणं वग्गणा जाव थणियकुमाराणं वागणा। दं.१२.एगा मिच्छादिट्ठीयाणं पुढविक्काइयाणं वग्गणा, दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइयाणं वग्गणा।
९६. चौबीस दंडक जीवों की विविध विवक्षाओं से वर्गणा का
प्ररूपण(२) भवसिद्धिक जीवों की वर्गणा एक है।
अभवसिद्धिक जीवों की वर्गणा एक है। दं.१. भवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। अभवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। दं.२-२४. इसी प्रकार यावत् भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक
वैमानिकों की वर्गणा एक है। (३) १. सम्यक्दृष्टि जीवों की वर्गणा एक है,
२. मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है, ३. सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। दं.१.१. सम्यक्दृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है, २. मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है, ३. सम्यक्मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है। दं.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त प्रत्येक की एक-एक वर्गणा है। दं. १२. पृथ्वीकायिक मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है। दं.१३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त प्रत्येक जीवों की वर्गणा एक-एक है। दं. १७. सम्यक्दृष्टि द्वीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। मिथ्यादृष्टि द्वीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। दं. १८. इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है।
दं.१७.एगा सम्मदिट्ठीयाणं बेइंदियाणं वग्गणा, एगा मिच्छादिट्ठीयाणं बेइंदियाणं वग्गणा, दं.१८.एवं तेइंदियाण वि