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________________ जीव अध्ययन ४. अत्थेगइया विसमाउया विसमोववण्णगा। से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"णेरइया णो सव्वे समाउया।' प. . २. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा? सव्वे समसरीरा ? सव्ये समुस्सासणिस्सासा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । जहा रइया तहा भाणियच्या प. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे। प. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ"असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा ?" उ. गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. पुव्वोववण्णगा य २. पच्छोववण्णगा य। १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं महाकम्मतरागा । २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं अप्पकम्मतरागा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चद्द"असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा।" प. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समवण्णा ? उ. गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे । प. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ"असुरकुमारा णो सव्वे समयण्णा ?" उ. गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. पुव्वोववण्णगा य २. पच्छोवयण्णगा य १. तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा, २. तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा, से तेणद्वेण गोयमा ! एवं बुच्चइ"असुरकुमारा णो सव्वे समवण्णा" एवं लेस्साए बि वेयणाए जहा नेरइया । अवसेसं जहा रइयाणं । दं. ३-११. एवं जाव थणियकुमारा । २ दं. १२. पुढविक्काइया आहार कम्म-वण्ण लेस्साहिं जहा रइया । प. पुढविक्काइया णं भंते ! सव्वे समवेयणा ? १. विया. स. १, उ. २, सु. ५/७ २. (क) विया. स. १, उ. २, सु. ६ (ख) विया. स.१६, उ. ११, सु. १ १९७ ४. कई नारक विषम आयु वाले हैं और पहले पीछे उत्पन्न हुए हैं, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी नारक समान आयु वाले नहीं हैं।" प्र. दं. २. भन्ते ! सभी असुरकुमार क्या समान आहार वाले हैं ? सभी समान शरीर वाले हैं ? सभी समान उच्छ्वास निःश्वास वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष सब वर्णन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। प्र. भन्ते ! क्या सभी असुरकुमार समान कर्म वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पूर्वोपपन्नक २. पश्चादुपपन्नक १. उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं। २. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अल्पतरकर्म वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं।" प्र. भंते! असुरकुमार क्या सभी समान वर्ण वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सभी असुरकुमार समान वर्ण वाले नहीं हैं ?" उ. गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पूर्वोपपन्नक २. पश्चादुपपन्नक १. उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं। २. उनमें से जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सभी असुरकुमार समान वर्ण वाले नहीं हैं।" इसी प्रकार लेश्या के विषय में भी कहना चाहिए। वेदना का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिए। शेष द्वारों (क्रिया और आयु) का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिए। ६. ३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त (समाहारादि सात द्वार) समझना चाहिए। दं. १२. पृथ्वीकायिकों के आहार, कर्म, वर्ण, और लेश्या का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिए। प्र. भंते ! क्या सभी पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं ? (ग) विया. स.१६, उ. १२-१४ (घ) विया. स. १७, उ. १३-१७।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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