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________________ ( १८६ - ६. दिट्ठीदार- १. सम्मदिट्ठीहिं जीवाइओ तियभंगो। विगलिंदिएसु छब्भंगा। २. मिच्छदिट्ठीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो। ३. सम्मामिच्छादिट्ठीहिं छब्भंगा। ७. संजय-दार १. संजतेहिं जीवाइओ तियभंगो। २. असंजतेहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो। ३. संजतासंजतेहिं जीवाइओ तियभंगो। ४. नोसंजय-नो असंजय-नो संजयासंजय-जीव-सिद्धेहिं तियभंगो। ८. कसाय-दारं १. सकसाईहिं जीवाइओ तियभंगो। एगिदिएसु अभंगयं। कोहकसाईहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। देवेहिं छब्भंगा। माणकसाई मायाकसाई जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। द्रव्यानुयोग-(१) ६. दृष्टि द्वार१. सम्यग्दृष्टि जीवों में जीवादिक तीन भंग कहने चाहिए। विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए। २. मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। ३. सम्यगमिथ्यादृष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिए। ७. संयत द्वार १. संयतों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। २. असंयतों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए! ३. संयतासंयत जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। ४. नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। ८. कषायद्वार१. सकषायी (कषाययुक्त) जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। एकेन्द्रिय में अभंगक (एक भंग) कहना चाहिए। क्रोधकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। (क्रोध कषायी) देवों में छह भंग कहने चाहिए। मानकषायी और मायाकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिकों और देवों में छह भंग कहने चाहिए। लोभकषायी जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए। २. अकषायी जीवों, मनुष्यों और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। ९. ज्ञान द्वार१. औधिक (सामान्य) ज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिए। अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। २. औधिक (सामान्य) अज्ञान, मति-अज्ञान और श्रुत अज्ञान में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। ३. विभंगज्ञान में भी जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। १०. योग द्वार१. सयोगी जीवों का कथन औधिकं जीवों के समान करना चाहिए। मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। विशेष-काययोगी एकेन्द्रियों में अभंगक (केवल एक भंग) होता है। नेरइय-देवेहिं छब्भंगा। लोभकसायीहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। नेरइएसु छब्भंगा। २. अकसाई जीव-मणुएहिं सिद्धेहिं तियभंगो। ९. णणदारं१. ओहियनाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे जीवाइओ तियभंगो। विगलिंदिएहिं छडभंगा। ओहिनाणे मणपज्जवणाणे केवलनाणे जीवाइओ तियभंगो। २. ओहिएअण्णाणे मइअण्णाणे सुयअण्णाणे एगिदियवज्जो तियभंगो। ३. विभंगनाणे जीवाइओ तियभंगो। १०. जोग दारं १. सजोगी जहा ओहिओ। मणजोगी वयजोगी कायजोगी जीवाइओ तियभंगो, णवरं-कायजोगी एगिंदिया तेसु अभंगयं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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