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________________ जीव अध्ययन २. अजोगी जहा अलेसा । ११. उवओगदारं सागारोवउत्त- अणागारोवउत्तेहिं तियभंगो। १२. वेददारं १. सवेयगा य जहा सकसाई। इत्थिवेयग-पुरिसवेयग-नपुंसगवेदगेसु जीवाइओ तियभंगो। वरं - नपुंसगवेदे एगिंदिएसु अभंगयं । २. अवेयगा जहा अकसाई । १३. सरीरदारं ससरीरा जहा ओहिओ । जीवेगिंदियवज्जो ओरालिय- वेउव्वियसरीरीणं जीव एगिंदियवज्जो तियभंगो। आहारगसरीरे जीव- मणुएसु छब्भंगा। तेयग-कम्मगाणं जहा ओहिया। असरीरेहिं जीव-सिद्धेहिं तियभंगो। १४. पज्जतीदार १. आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जतीए इंदियपज्जत्तीए आणापाण-पज्जतीए जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। भासामणपज्जत्तीए जहा सण्णी । २. आहार अपज्जत्तीए जहा अणाहारगा । सरीर अपज्जत्तीए इंदिय-अपज्जत्तीए अपज्जत्तीए जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो । नेरइय देव मणुएहिं छभंगा। भासामण अपज्जत्तीए जीवादिओ तियभंगो, इय- देव मणुएहिं छभंगा । - विया. स. ६, उ. ४ सु. १-१९ ९२. जीव-चडवीसदंडएस अजीवदव्यस्स परिभोगत परूवणंप जीवदव्वाणं भंते! अजीवदव्या परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अजीवदव्वाणं जीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ? आणापाण १८७ २. अयोगी जीवों का कथन अलेश्य जीवों के समान करना चाहिए। ११. उपयोग द्वार १. साकारोपयोग और अनाकारोपयोग वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। १२. वेद द्वार १. सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान करना चाहिए। स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए । विशेष-नपुंसकवेदी एकेन्द्रिय अभंगक (एक भंग) वाले होते हैं। २. अवेदक जीवों का कथन अकषायी जीवों के समान करना चाहिए। १३. शरीर द्वार सशरीरी जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान करना चाहिए। औदारिक और वैक्रियशरीर वालों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिए। आहारक शरीर वाले जीव और मनुष्य में छह भंग कहने चाहिए। तेजस और कार्मण शरीर वाले जीवों का कथन औधिक के समान करना चाहिए। अशरीरी जीव और सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए । १४. पर्याप्ति द्वार १. आहारपर्याप्ति, २. शरीरपर्याप्ति, ३. इन्द्रियपर्याप्ति और ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। ५. भाषापर्याप्ति और ६. मनःपर्याप्ति वाले जीवों का कथन संज्ञीजीवों के समान करना चाहिए। २. आहार अपर्याप्ति वाले जीवों का कथन अनाहारक जीवों के समान करना चाहिए। शरीर अपर्याप्ति, इन्द्रिय अपर्याप्ति और श्वासोच्छवास अपर्याप्त वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए । (अपर्याप्तक) नैरयिक, देव तथा मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए। भाषा अपर्याप्ति और मनः अपर्याप्त वाले जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। नैरयिक, देव तथा मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए। ९२. जीव- चौबीस दंडकों में अजीवद्रव्य के परिभोगत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! अजीव द्रव्य जीवद्रव्यों के परिभोग में आते हैं या जीवद्रव्य अजीवद्रव्यों के परिभोग में आते हैं?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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