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________________ जीव अध्ययन दं.१३-१६.एवं जाव वणफइकाइया। दं.१७-२४. सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा। आहारग दारंआहारगाणं जीवेगेदियवज्जो तियभंगो। अणाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा एवं भाणियव्वा-,तं जहा१. सपएसा वा, २. अपएसावा, ३. अहवा सपदेसे य अपदेसे य, ४. अहवा सपदेसे य अपदेसाय, ५. अहवा सपदेसा य अपदेसे य, ६. अहवा सपदेसा य अपदेसा य सिद्धेहिं तियभंगो। भविय द्वारंभवसिद्धिया अभवसिद्धिया जहा ओहिया। नोभवसिद्धिया नोअभवसिद्धिया जीव सिद्धेहिं तियभंगो। - १८५) द. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त कहना चाहिए। दं. १७-२४. शेष जीवों का कथन सिद्धों पर्यन्त नैरयिकों के समान करना चाहिए। २. आहारकद्वार जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष सभी आहारक जीवों के लिए तीन भंग कहने चाहिए [(१) सभी सप्रदेश, (२) अनेक सप्रदेश और एक अप्रदेश (३) अनेक सप्रदेश और अनेक अप्रदेश] अनाहारकों के लिए जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर छह भंग इस प्रकार कहने चाहिए-यथा१. सभी सप्रदेश, २. सभी अप्रदेश, ३. अथवा एक सप्रदेश और एक अप्रदेश, ४. अथवा एक सप्रदेश और अनेक अप्रदेश, ५. अथवा अनेक सप्रदेश और एक अप्रदेश, ६. अथवा अनेक सप्रदेश और अनेक अप्रदेश। सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए। ३. भव्यद्वार भवसिद्धिक (भव्य) और अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों के लिए औधिक (सामान्य) जीवों की तरह कहना चाहिए। नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए। ४. संज्ञी द्वार १. संज्ञी जीवों में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। २. असंज्ञी जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए और नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिए। ३. नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। ५. लेश्या द्वार सलेश्य जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान करना चाहिए। कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या वाले जीवों का कथन आहारक जीव के समान करना चाहिए। विशेष-जिसके जो लेश्या हो उसके वह लेश्या कहनी चाहिए। तेजोलेश्या में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए, विशेष-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग कहने चाहिए। पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में जीवादि तीन भंग कहने चाहिए। अलेश्य (लेश्या रहित) जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिए। (अलेश्य) मनुष्यों में (पूर्ववत्) छह भंग कहने चाहिए। ४. सण्णि दारं १. सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो। २. असण्णीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो। नेरइय देव मणुएहिं छब्भंगा। ३. नोसण्णि नोअसण्णि जीव-मणुय-सिद्धेहिं तियभंगो। ५. लेस्सादार सलेस्सा जहा ओहिया। कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ णवरं-जस्स अस्थि एयाओ। तेउलेस्साए जीवाइओ तियभंगो णवरं-पुढविकाइएसु आउ-वणस्सईसु छब्भंगा। पम्हलेसा सुक्कलेसाए जीवाइओ तियभंगो। अलेसेहिं जीव-सिद्धेहिं तियभंगो। मणुस्सेसु छब्भंगा।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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