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________________ १८४ उ. गोयमा ! देसेया वि,सव्वेया वि। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ 'जीवा सेया वि, निरेया वि।' प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं देसेया, सव्वेया? उ. गोयमा ! देसेया वि, सब्वेया वि। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ_ 'नेरइया देसेया वि, सव्वेया वि? उ. गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नता,तं जहा १. विग्गहगइसमावनगा य, २. अविग्गहगइसमावन्नगाय। १. तत्थ णं जे ते विग्गहगइसमावन्नगा ते णं सब्वेया २. तत्य णं जे ते अविग्गहगइसमावन्नगा तेणं देसेया, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'नेरइया देसेया वि, सब्वेया वि।' दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया। -विया.स.२५, उ.४,सु.८१-८६ ९१. जीव-चउवीसदंडएसु कालादेसेण सप्पएसाइ चउद्दसदार परूवणं १-२ सपदेसाहारग,३. भविय, ४.सण्णि, ५.लेस्सा ६.दिट्ठी,७.संजय,८.कसाए। ९.णाणे,१०-११ जोगुवओगे, १२. वेदे, य १३. सरीर १४. पज्जत्ती। -विया.स.६, उ.४,सु.२० १. सपएस दारंप. जीवेणं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसे,अपदेसे? द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि 'जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं।' प्र. दं.१.भन्ते ! नैरयिक देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक हैं ? उ. गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___ 'नैरयिक देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं ?' उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. विग्रहगति समापन्नक, २. अविग्रहगति समापन्नक। १. उनमें से जो विग्रहगति समापन्नक हैं वे सर्वकम्पक हैं। २. जो अविग्रहगति समापन्नक हैं वे देशकम्पक हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'नैरयिक देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं।' दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त समझना चाहिए। ९१. जीव-चौबीस दंडकों में कालादेश से सप्रदेशादि चौदह द्वारों का प्ररूपण १. सप्रदेश, २. आहारक, ३. भव्य, ४. संज्ञी, ५. लेश्या, ६. दृष्टि, ७. संयत, ८. कषाय, ९. ज्ञान, १०. योग, ११. उपयोग,१२.वेद,१३.शरीर,१४.पर्याप्ति। इन चौदह द्वारों का कथन इस प्रकार है उ. गोयमा ! नियमा सपदेसे। प. द.१.नेरइएणं भंते !कालादेसेणं किं सपदेसे,अपदेसे? उ. गोयमा ! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे। द.२-२४.एवं जाव सिद्धे। प. जीवाणं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा,अपदेसा? उ. गोयमा ! नियमा सपदेसा। प. द.१.नेरइयाणं भंते ! कालादेसेण किं सपदेसा अपदेसा? १. सप्रदेश द्वारप्र. भन्ते ! क्या (एक) जीव कालादेश (काल की अपेक्षा) से सप्रदेश है या अप्रदेश है? उ. गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः (निश्चित रूप से) सप्रदेश है। प्र. द.१.भन्ते ! क्या (एक) नैरयिक कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश है? उ. गौतम ! वह कदाचित् सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है। द.२-२४. इसी प्रकार एक सिद्ध जीव पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भन्ते ! कालादेश से अनेक जीव सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? उ. गौतम ! नियमतः सप्रदेश हैं। प्र. दं.१.भन्ते ! क्या (अनेक) नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं? उ. गौतम ! १. सभी (नैरयिक) सप्रदेश हैं, ' २. बहुत से सप्रदेश हैं और एक अप्रदेश है। ३. बहुत से सप्रदेश और अप्रदेश हैं। दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! अनेक पृथ्वीकायिक जीव सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? उ. गौतम ! वे सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं। उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा, २.अहवा सपदेसा य, अपदेसे य, ३.अहवा सपदेसा य, अपदेसा य। दं.२-११.एवं जाव थणियकुमारा। प. द.१२.पुढविकाइया णं भंते ! किं सपदेसा,अपदेसा? उ. गोयमा ! सपदेसा वि, अपदेसा वि।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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