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________________ १६८ १. पढमसमय - बायर संपराय सराग-चरित्तारिया य २. अपढमसमय-बायर- संपराय सराग-चरित्तारिया य । १. चरिमसमय-बायर - संपराय-सराग-चरित्तारिया य, २. अवरिमसमय- बायर संपराय सराग-चरितारिया य अहवा बायर-संपराय-सराग-चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं अहवा जहा १. पडिवाई य २. अपडिवाई य से तं बायर - संपराय - सराग-चरित्तारिया । से तं सराग चरित्तारिया । प से किं तं वीयराय-चरितारिया ? उ. वीयराय - चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. उवसंतकसाव - चीयराय चरितारिया य २. खीणकसाव वीयराव चरितारिया य प. से किं तं उवसंतकसाय- वीयराय-चरित्तारिया ? उ. उवसंतकसाव चीयराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. पढमसमय- उवसंतकसाय वीयराय-चरित्तारिया य, २. अपढमसमय-उवसंतकसाय वीयराय चरित्तारिया य अहवा १ चरिमसमय उवसंतकसाय वीयराय चरित्तारिया य २. अचरिमसमय-उवसंतकसाय- वीयराय-चरित्तारिया य। सेतं वसंतकसाय - वीयराय-चरित्तारिया । प से किं तं खीणकसाय बीयराय चरितारिया ? उ. खीणकसाय - वीयराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. छउमत्थ- स्त्रीणकसाय वीयराय चरितारिया य २. केवलि- खीणकसाय- बीयराय चरितारिया य प से किं तं छउमत्थ खीणकसाथ चीयराव चरितारिया ? उ छउमत्थ खीणकसाथ वीवराव चरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सयंबुद्ध - छउमत्थ - खीणकसाय - वीयराय-चरित्तारिया य, २. बुद्धबोहिय छउमत्थ खीण कसाय - वीयरायचरित्तारिया य प. से किं तं सयंबुद्ध - छउमत्थ- खीणकसाय- वीयरायचरितारिया ? उ सयं बुद्ध - छउमत्थ खीणकसाय- वीयराय-चरित्तारिया दुवा पण्णत्ता, तं जहा १. पदमसमय सयंबुद्ध-छउमत्थ खीणकसायचीवरायचरितारिया य २. अपढमसमय- संयं बुद्ध - छउमत्थ खीणकसायवीयराय - चरित्तारिया य । १. प्रथमसमय- बादर सम्पराय सराग चारित्रार्य, २. अथवा - १ अप्रथमसमय बादर - सम्पराय सराग चारित्रार्य । चरमसमय बादर सम्पराय सराग चारित्रार्य, अचरमसयम- बादर - सम्पराय सराग चारित्रार्य । अथवा - १. बादर - सम्पराय सराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा २. १. प्रतिपाती, २. अप्रतिपाती। यह बादर सम्पराय सराग चारित्रार्य का वर्णन हुआ। यह सराग चारित्रार्य का वर्णन हुआ। वीतराग चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, १. उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य, २. क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य । प्र. उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, प्र. उ. द्रव्यानुयोग - (१) यथा १. प्रथमसमय-उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य, २. अप्रथमसमय-उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य; अथवा १. चरमसमय-उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य, २. अचरमसमय-उपशान्तकषाय- वीतराग चारित्रार्य । यथा यह उपशान्तकषाय-चीतराग चारित्रार्य का निरूपण हुआ। प्र. क्षीणकषाय वीतराग चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य, २. केवलि-क्षीणकषाय वीतराग चारित्रार्य । प्र. स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ प्रकार के हैं ? प्र. छद्मस्थ-क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य कितने प्रकार के हैं ? उ. छद्मस्थ-क्षीणकषाय वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. स्वयंबुद्ध छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य, २. बुद्धबोधित-छरास्थ क्षीणकषाय वीतराग चारित्रार्थ । क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य कितने - उ. स्वयंबुद्ध- छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. प्रथमसमय- स्वयं बुद्ध-छद्मस्थ क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य, २. अप्रथमसमय- स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय वीतरागचारित्रार्य ।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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