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________________ १५६ उट्टा, गोणा, गवया, रोज्झा, पसया, महिसा, मिया, संवरा, वराहा, अय, एलग- रूरू- सरभ- चमर-कुरंगगोकण्णमाई जेयाबऽण्णे तहप्पगारा सेतं दुखुरा । प. (३) से किं तं गंडीपया? उ. गंडीपया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा हत्थी, पूयणसा, मंकुणहत्थी, खग्गा, गंडा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। से तंगडीपया। प. ( ४ ) से किं तं सनफया ? उ. सणप्फया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा सीहा, वग्घा, दीविया, अच्छा, तरच्छा, परस्सरा, सियाला, बिडाला, सुणगा, कोलसुणगा, कोळतिया, ससगा, चित्तगा, चित्तलगा, जे बावऽष्णे तहपगारा से तं सणप्फया। समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सम्मुच्छिमा य २. गढ़वतिया व' | २. तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसंगा। ३. तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १. इत्थी, २. पुरिसा, ३ . णपुंसगा। ४. एएसि णं एवमाइयाणं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपन्नत्ताणं जाईकुलको डिजोणिप्पमुहसयसहस्सा मक्खायं । सेतं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । दस भवतीति - पण्ण. प. १, सु. ६९-७५ परिसप्पाण पण्णवणा प. से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उ. परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. उरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया य २. भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य३ । - पण्ण. प. १ सु. ७६ १. जीवा. पडि ३, सु. ९६ (२) २. ठाणं. अ. १०, सु. ७८२ ३. (क) उत्त. अ. ३६, गा. १८१ उरपरिसप्पाण पण्णवणाप से किं तं उरपरिसप्पथलवरपंचेंद्रियतिरिक्खजोणिया ? द्रव्यानुयोग - (१) ऊंट, गाय, गवय, रोझ, पशुक, महिष, मृग, सांभर, वराह, अज, एलक, रूरू, सरभ, चमर, कुरंग, गोकर्ण आदि। इसी प्रकार के जो भी अन्य प्राणी हों उन्हें द्विखुर जानना चाहिए। यह दो खुर वालों की प्ररूपणा हुई। प्र. (३) गण्डीपद कितने प्रकार के है? उ. गण्डीपद अनेक प्रकार के कहे गए हैं, हाथी, हस्तिपूतनक, मत्कुणहस्ती, खड्डी और गेंडा । इसी प्रकार के जो भी अन्य प्राणी हों, उन्हें गण्डीपद में जान लेना चाहिए। यथा यह गण्डीपद जीवों की प्ररूपणा हुई। प्र. (४) सनखपद कितने प्रकार के हैं ? उ. सनखपद अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा सिंह, व्याघ्र, द्वीपिक, रीछ, तरक्ष, पाराशर, शृगाल, विडाल, श्वान, कोलश्वान, कोकन्तिक, शशक, चीता और चित्तलग । इसी प्रकार के जो भी प्राणी हैं, वे सब सनखपदों के अन्तर्गत समझने चाहिए। यह सनखपदों का निरूपण हुआ। ये सभी प्रकार के (चतुष्पद-स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सम्मूर्च्छिम, २. गर्भज २. उनमें जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सब नपुंसक हैं। ३. उनमें जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक ४. इस प्रकार ( एकखुर इत्यादि) इन स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के पर्याप्तक अपर्याप्तकों के दस लाख जाति-कुल-कोटि-योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है। यह चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का निरूपण हुआ। परिसर्पों की प्रज्ञापना प्र. परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने प्रकार के हैं ? उ. परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. उरः परिसर्प - स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, २. भुजपरिसर्प स्थलचर- पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक । उरपरिसर्पों की प्रज्ञापना प्र. उरः परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कितने प्रकार के हैं ? (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३९ (ग) जीवा. पडि ३, सु. ९६ (२) .
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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