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________________ जीव अध्ययन १. सोंड़मगरा य सेतं मगरा। २. मट्ठमगरा य । प. (५) से किं तं सुंसुमारा ? उ. सुंसुमारा एगागारा पण्णत्ता। सेतं सुंसुमारा । जे यावऽण्णे तहप्पगारा। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -पण्ण. प. १, सु. ६४-६६ १. सम्मूच्छिमा व २ गव्वतिया । 7 २. तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। . ३. तत्थ णं जे ते गब्भवतिया ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १ इत्थी, २. पुरिसा, - ३. नपुंसगा। ४. एएसि णं एवमाइयाणं जलयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपन्नत्ताणं अद्धतेरस जाइकुलकोडि जोणिप्पमुहस्यसहस्सा भवतीति मक्खाय । सेतं जलयर पंचेंदियातिरिक्खजोणिया । २. थलयराणं पण्णवणा प से किं तं थलचरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उ. थलयरपंचैदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. चउप्पयथलवरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य २. परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य३ । प. से किं तं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उ. चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउब्बिहा पण्णत्ता, तं जहा १. एगखुरा, २ . दुखुरा, ३. गंडीपया ४. सणफया । प. (१) से किं तं एगखुरा ? उ. एगखुरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा अस्सा, अस्सतरा, घोडगा, गद्दभा, गोरक्खरा, कंदलगा, सिरिकंदलगा, आवत्ता, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। १. जीवा. पडि १, सु. ३३, ३४, ३७ २. जीवा. पडि ३, सु. ९६ (२) -पण्ण. प. १ सु. ६७-६८ सेतं एमखुरा प. (२) से किं तं दुखुरा ? उ. दुखुरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा ३. (क) उत्त. अ. ३६, गा. १७९ (ख) जीवा. पडि. ३, सु. ९६ (२) जीवा. पडि. १, सु. ३९ १. शौण्डमगर, यह मगर की प्ररूपणा हुई। २. मृष्टमगर । प्र. (५) सुसुगार कितने प्रकार के है? उ. सुसुगार एक ही आकार-प्रकार के कहे गए हैं। यह सुसुमार का निरूपण हुआ। अन्य जो इस प्रकार के हों वे भी समझ लेना चाहिए। सभी (उपर्युक्त सभी प्रकार के जलचर तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. सम्मूर्च्छिम २. गर्भज । २. इनमें से जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सब नपुंसक होते हैं। ३. इनमें से जो गर्भज है, वे तीन प्रकार के कड़े गए हैं। यथा - १. स्त्री, २. पुरुष, ३. नपुंसक। ४. इस प्रकार (मत्स्य इत्यादि) इन पांचों प्रकार के) पर्याप्तक और अपर्याप्तक जलचर-पंचेन्द्रियतियंज्यों के साढ़े बारह लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है। r यह जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की प्ररूपणा हुई। २. स्थलचर जीवों की प्रज्ञापना प्र. स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कितने प्रकार के हैं ? उ. स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोगिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक २. परिसर्प स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक १५५ प्र. चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि कितने प्रकार के है? उ. चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. एकखुरा, २ . द्विखुरा, ३. गण्डीपद, ४. सनखपद । प्र. (१) एकखुरा कितने प्रकार के हैं ? उ. एकखुरा अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा अश्व, अश्वतर, घोटक, गधा, गोरक्षर, कन्दलक, श्रीकन्दलक और आवती । इसी प्रकार के अन्य जितने भी प्राणी हैं, उन्हें एकखुर समझना चाहिए। यह एकखुरों का प्ररूपण हुआ। प्र. (२) द्विसुर कितने प्रकार के हैं? उ. द्विखुर अनेक प्रकार के कहे गए हैं, ४. (क) उत्त. अ. ३६, गा. १८० (ख) जीवा. पडि. १, सु. ३९ (ग) ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३५१/१ यथा
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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