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________________ १५७ जीव अध्ययन उ. उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा १.अही,२.अयगरा,३.आसालिया,४.महोरगा। प. (१) से किं तं अही? उ. अही दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. दव्वीकरा य,२. मउलिणो य'। प. से किं तं दव्वीकरा? उ. दव्वीकरा अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा आसीविसा, दिट्ठीविसा, उग्गविसा, भोगविसा, तयाविसा, लालाविसा, उस्सासविसा, निस्सासविसा, कण्हसप्पा, सेदसप्पा, काओदरा, दज्झपुप्फा, कोलाहा, मेलिमिंदा सेसिंदा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सेतंदव्वीकरा। .प. से किं तं मउलिणो? उ. मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा दिव्वागा, गोणसा, कसाहीया, वइउल्ला, चित्तलिणो, मंडलिणो, माउलिणो अही अहिसलागा वायपडागा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सेतं मउलिणो। सेतं अही। प. (२) से किं तं अयगरा? उ. अयगरा एगागारा पण्णत्ता। सेतं अयगरा। प. (३) से किंतं आसालिया? ____ कइणं भंते ! आसालिया सम्मुच्छइ ? उ. गोयमा ! अंतोमणुस्सखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवेसु निव्वाघाएणं-पण्णरससु कम्मभूमीसु, वाघायं पडुच्च पंचसु महाविदेहेसु चक्कवट्टि-खंधावारेसु वा, वासुदेवखंधावारेसु बलदेवखंधावारेसु मंडलियखंधावारेसु महामंडलियखंधावारेसुवा, गामनिवेसेसु नगरनिवेसेसु निगमनिवेसेसु खेडनिवेसेसु कब्बडनिवेसेसु मडंबनिवेसेसु दोणमुहनिवेसेसु पट्टणनिवेसेसु आगरनिवेसेसु आसमनिवेसेसु संवाहनिवेसेसु रायहाणीनिवेसेसु। एएसि णं चेव णिवेसेसु एत्थ णं आसालिया सम्मुच्छिइ, जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए उक्कोसेणं बारसजोयणाई तयणुरूवं उ. उरःपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक चार प्रकार के कहे गये हैं। यथा १. अहि (सर्प), २. अजगर, ३. आसालिक, ४. महोरग। प्र. (१) अहि कितने प्रकार के हैं ? उ. अहि दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. दर्वीकर (फन वाले), २. मुकुली (बिना फन वाले)। प्र. दर्वीकर सर्प कितने प्रकार के हैं ? उ. दर्वीकर सर्प अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा आशीविष, दृष्टिविष, उग्रविष, भोगविष, त्वचाविष, लालाविष, उच्छ्वासविष, निःश्वासविष, कृष्णसर्प, श्वेतसर्प, काकोदर, दह्यपुष्प, कोलाह, मेलिमिन्द और शेषेन्द्र। इसी प्रकार के और भी जितने सर्प हों, वे सब दर्वीकर के अन्तर्गत समझना चाहिए। यह दर्वीकर सपों की प्ररूपणा हुई। प्र. मुकुली सर्प कितने प्रकार के हैं? उ. मुकुलि सर्प अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा दिव्याक, गोनस, कषाधिक, व्यतिकुल, चित्रली, मण्डली, मालीनी, अहि, अहिशलाका और वातपताका। अन्य जितने भी इसी प्रकार के सर्प हैं, वे सब मुकुली सर्प की जाति के समझने चाहिए। यह मुकुली सपों का वर्णन हुआ। अहि (सों) की प्ररूपणा पूर्ण हुई। प्र. (२) अजगर कितने प्रकार के कहे हैं ? उ. अजगर एक ही आकार-प्रकार का कहा गया है। यह अजगर की प्ररूपणा हुई। प्र. (३) भंते ! आसालिक कितने प्रकार के होते हैं और वे कहां उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे (आसालिक उरःपरिसर्प) मनुष्य क्षेत्र के अन्दर अढाई द्वीपों में, निर्व्याघातरूप से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात की अपेक्षा से पांच महाविदेह क्षेत्रों में, अथवा चक्रवर्ती के स्कन्धावारों में, या वासुदेवों के स्कन्धावारों में, बलदेवों के स्कन्धावारों में, माण्डलिकों के स्कन्धावारों में, महामाण्डलिकों के स्कन्धावारों में, ग्रामनिवेशों में, नगरनिवेशों में, निगम-निवेशों में, खेटनिवेशों में, कर्बटनिवेशों में, मडम्बनिवेशों में, द्रोणमुखनिवेशों में, पट्टणनिवेशों में, आकरनिवेशों में, सम्बाधनिवेशों में और राजधानीनिवेशों में। इन (चक्रवर्ती-स्कन्धावार आदि स्थानों) का विनाश होने वाला हो तब इन (पूर्वोक्त) स्थानों में आसालिक सम्मूर्छिमरूप से उत्पन्न होते हैं। वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग-मात्र की अवगाहना से और उत्कृष्ट बारह योजन की अवगाहना तक के उत्पन्न होते हैं। उसके अनुरूप ही उनका विष्कम्भ और बाहल्य होता है। ३. जीवा. पडि. १, सु. १०८ ४. जीवा. पडि.१, सु. १०९ १. जीवा. पडि. १, सु. ३६ २. जीवा. पडि. १, सु. ३६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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