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________________ जीव अध्ययन १४३ उदए अवए पणए सेवाले कलंबुया हढे कसेरुया कच्छा भाणी उप्पले पउमे कुमुदे नलिणे सुभए सोगंधिए पोंडरीए महापोंडरीए सयपत्ते सहस्सपत्ते कल्हारे कोकणदे अरविंदे तामरसे भिसे भिसमुणाले पोक्खले पोक्खलत्थिभए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा, से तंजलरुहा। (१२) कूहण प. से किं तं कुहणा? उ. कुहणा अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा आए काए कुहणे कुणक्के दव्वहलिया सप्फाए सज्जाए सित्ताए वंसी णहिया कुरए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा, सेतं कुहणा। -पण्ण.प.१.सु.५०-५२ ५६. पत्तेय सरीरी वणस्सइ जीवाणं सरूव परूवणं णाणाविहसंठाणा रुक्खाणं एगजीविया पत्ता। खंधो विएगजीवो ताल-सरल-नालिएरीणं॥ उदक, अवक, पनक, शैवाल, कलम्बुका, हढ, कसेरूका, कच्छा, भाणी, उत्पल, पद्न् , कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहनपत्र, कल्हार, कोकनद, अरविन्द, तामरस, कमल, भिस, भिसमृणाल, पुष्कर और पुष्करास्तिभज। इस प्रकार और भी (जल में उत्पन्न होने वाली जो वनस्पतियां हैं, उन्हें जलरुह के अन्तर्गत समझना चाहिए।) यह जलरुहों का निरूपण हुवा। (१२) कूहण प्र. कुहण वनस्पतियां कितने प्रकार की हैं ? उ. कुहण वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथा आय, काय, कुहण, कुनक्क, द्रव्यहलिका, शफाय, सद्यात, सित्राक और वंशी, नहिता, कुरक। इसी प्रकार की जो अन्य वनस्पतियां हैं। उन सबको कुहण के अन्तर्गत समझना चाहिए। यह कुहण वनस्पतियों का वर्णन हुवा। ५६. प्रत्येक शरीरी वनस्पति जीवों के स्वरूप का प्ररूपण वृक्षों की आकृतियां नाना प्रकार की होती हैं। इनके पत्ते एकजीवक होते हैं, और स्कन्ध भी एक जीव वाला होता है। ताल, सरल, नारिकेल वृक्षों के पत्ते और स्कन्ध एक-एक जीव वाले होते हैं। जैसे श्लेष द्रव्य से मिश्रित किए हुए समस्त सर्षपों की वट्टी (में सरसों के दाने पृथक्-पृथक् होते हुए भी) एक रूप प्रतीत होती है, वैसे ही (रागद्वेष से उपचित विशिष्टकर्मश्लेष से ) एकत्र हुए प्रत्येक शरीरी जीवों के शरीरसंघात रूप होते हैं। जैसे तिलपपड़ी (तिलपट्टी) में (प्रत्येक तिल अलग-अलग प्रतीत होते हुए भी) बहुत से तिलों के संहत (एकत्र) होने पर एक होती हैं। वैसे ही प्रत्येक-शरीरी जीवों के सरीरसंघात होते हैं। अन्य ऐसे और भी जान लेना चाहिए। इस प्रकार उन (पूर्वोक्त) प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक जीवों की प्रज्ञापना पूर्ण हुई। ५७. साधारण शरीरी वनस्पति जीवों के स्वरूप का प्ररूपणप्र. साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथाअवक, पनक, शैवाल, लोहिनी, स्निहूपुष्प, स्तिहू, हस्तिभगा और अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिउण्डी,, तदनन्तर मुसुण्डी। रूरू कण्डुरिका, जीरू, क्षीरविराली ; तथा किट्टिका, हरिद्रा, शृंगबेर और आलू एवं मूला। जह सगलसरिसवाणं सिलेसमिस्साण वट्टिया वट्टी। पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया॥ जह वा तिल पप्पडिया बहुएहिं तिलेहिं संहिया संती। पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया। जे यावऽण्णे तहप्पगारा, सेतं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया। -पण्ण.प.१,सु.५३ ५७. साहारण सरीरी वणस्सइ जीवाणं सरूव परूवणं प. से किं तं साहारणसरीरबायर वणस्सइकाइया? उ. साहारणसरीर बायर वणस्सइकाइया अणेगविहा पण्णत्ता तं जहाअवए पणए सेवाले लोहिणी णिहु त्थिहू स्थिभगा। असकण्णी सीहकण्णी सिउंढि तत्तो मुसुंढी य॥ रूरू कंडुरिया जारू छीरविराली तहेव किट्ठीया। हलिद्दा सिंगबेरे यआलूगा मूलए इयर १. (क) उत्त. अ. ३६, गा. ९७-१०० (ख) जीवा. पडि. १, सु. २० २. उत्त. अ. ३६ गा. ९६-९९
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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