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________________ १४४ द्रव्यानुयोग-(१) कंबू य कण्हकडबू महुओ वलई तहेव महुसिंगी। णिरूहा सप्पसुयंधा छिण्णरूहा चेव बीयरूहा।। पाढा मियवालुंकी महुररसा चेव रायवल्ली य। पउमा य माढरी दंती चंडी किट्टि त्तियावरा।। मासपण्णी मुग्गपण्णी जीविय रसभेय रेणुया चेव। काओली खीरकाओली तहा भंगीणही इय।। किमिरासि भद्दमुत्था णंगलई पलुगा इय। किण्हे पउले य हढे हरतणुया चेव लोयाणी।। कण्हे कंदे वज्जे सूरणकंदे तहेव खल्लूडे। एए अणंतजीवा,जे यावऽण्णे तहाविहा।। तणमूले कंदमूले वंसमूले त्ति यावरे। संखेज्जमसंखेज्जा बोधव्वाऽणतजीवा य॥ सिंघाडगस्स गुच्छो अणेगजीवो उ होइ नायव्वो। पत्ता पत्तेयजिया, दोण्णि य जीवा फले भणिया।। -पण्ण. प.१, सु. ५४(१-2) ५८. पत्तेय साहारण वणस्सई सरीराणं लक्खणाणि जस्स मूलस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे उसे मूले,जे यावऽण्णे तहाविहा।। जस्स कंदस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई। अणंतजीवो उसे कंदे,जे यावऽण्णे तहाविहा।। कम्बू और कृष्णकटबू, मधुक, वलकी तथा मधुशृंगी, नीरूह, सर्पसुगन्धा, छिन्नरूह और बीजरूह। पाढा, मृगवालुंकी, मधुररसा और राजपत्री तथा पद्मा, माठरी, दन्ती, इसी प्रकार चण्डी और इसके बाद किट्टी। माषपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवित, रसभेद और रेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली तथा भुंगी, इसी प्रकार नखी। कृमिराशि, भद्रमुस्ता, नांगलकी, पलुका, इसी प्रकार कृष्णप्रकुल और हड, हरतनुका तथा लोयाणी। कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरणकन्द तथा खल्लूर, ये (पूर्वोक्त) अनन्तजीव वाले हैं। इनके अतिरिक्त और जितने भी इसी प्रकार के हैं, (वे सब अनन्त जीवात्मक हैं।) तृणमूल, कन्दमूल और वंशीमूल, ये और इसी प्रकार के दूसरे संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त जीव वाले समझने चाहिए। सिंघाड़े का गुच्छ अनेक जीव वाला होता है यह जानना चाहिए और इसके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते हैं। इसके फल में दो-दो जीव कहे गए हैं। ५८. प्रत्येक साधारण वनस्पति शरीरीजीवों के लक्षण जिस मूल का भंग भाग समान दिखाई दे, वह मूल अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे जितने भी मूल हों, उन्हें भी अनन्तजीव वाला समझना चाहिए। जिस टूटे या तोड़े हुए कन्द का भंग भाग समान दिखाई दे, वह कन्द अनन्त जीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे जितने भी कन्द हों, उन्हें अनन्तजीव वाला समझना चाहिए। जिस टूटे हुए स्कन्ध का भंग भाग समान दिखाई दे, वह स्कन्ध अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे स्कन्धों को (भी अनन्तजीव वाला समझना चाहिए।) जिस टूटी हुई छाल का भंग भाग समान दिखाई दे, वह छाल भी अनन्तजीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य छाल भी (अनन्तजीव वाली समझनी चाहिए।) जिस टूटी हुई शाखा का भंग भाग समान दृष्टिगोचर हो वह शाखा भी अनन्तजीव वाली है। इसी प्रकार की जो अन्य (शाखाएं) हों, (उन्हें भी अनन्तजीव वाली समझनी चाहिए।) टूटे हुए जिस प्रवाल का भंग भाग समान दीखे, वह प्रवाल भी अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के जितने भी अन्य (प्रवाल) हों (उन्हें अनन्तजीव वाले समझने चाहिए।). टूटे हुए जिस पत्ते का भंग भाग समान दिखाई दे, वह पत्ता (पत्र) भी अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार जितने भी अन्य पत्र हों, (उन्हें अनन्तजीव वाले समझने चाहिए।) टूटे हुए जिस फूल का भंग समान भाग दिखाई दे, वह अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी पुष्प हों, (उन्हें अनन्तजीव वाले समझने चाहिए।) जिस टूटे हुए फल का भंग भाग समान दिखाई दे, वह फल भी अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के अन्य जितने भी फल हों (उन्हें अनन्तजीव वाले समझने चाहिए।) जस्स खंघस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे उसे खंधे,जे यावऽण्णे तहाविहा।। जीसे तयाए भग्गाए, समोभंगो पदीसई। अणंतजीवा तया सा उ,जे यावऽण्णे तहाविहा।। जस्स सालस्स भग्गस्स,समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे उसे साले,जे यावऽण्णे तहाविहा।। जस्स पवालस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे पवाले, जे यावऽण्णे तहाविहा॥ जस्स पत्तस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे उसे पत्ते, जे यावऽण्णे तहाविहा।। जस्स पुष्फस्स भग्गस्स, समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे उ से पुप्फे,जे यावऽण्णे तहाविहा।। जस्स फलस्स भग्गस्स,समो भंगो पदीसई। अणंतजीवे फले से उ,जे यावऽण्णे तहाविहा।।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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