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________________ १४२ (९) हरिय प. से किं तं हरिया ? उ. हरिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाअज्जोरूह वोडाणे हरितग तह तंदुलेग्जग तणे य वत्थुल पारग मज्जार पाइ बिल्ली य पालक्का ॥ दगपिप्पली य दव्वी सोत्थियसाए तहेव मंडुक्की । • मूलग सरिसव अंबिलसाए य जियंतए चेव ॥ तुलसी कन्ह उराले फणिजए अज्जए व भूयनए ॥ चोरग दमणग मरूयग सयपुष्पिंदीवरे व तहा ।।३९-४१ ।। जे यावS तहप्पगारा, सेतं हरिया - पण्ण. प. १, सु. ४३-४९ प. कइ णं भंते! हरियकाया ? कइ हरियकायसया पण्णत्ता ? उ. गोयमा तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पण्णत्ता फलसहस्सं च बेंटबद्धाणं फलसहस्सं च णालबद्धाणं । ते सव्वे - हरितकायमेव समोयरंति । ते एवं समणुगम्ममाणा - समणुगम्ममाणा समणुगाहिज्जमाणा - समणुगाहिज्जमाणा समणुपेहिज्जमाणासमणुपेहिज्जमाणा समणुचिंतिज्जमाणा - समणुचिंतिज्जमाणा एएसु चैव दोसु काएसु समोयरंति, तं जहातसकाए चेव, थावरकाए चैव । एवामेव सपुव्वावरेणं आजीवदिट्ठतेण चउरासीत्ति जातिकुलकोडी - जोणीपमुहसयसहस्सा भवतीतिमक्खाया। (१०) ओसहि प. से किं तं ओसहीओ ? - उ. ओसडीओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ. तं जहा 7 सेतं ओसडीओ साल, वीही, गोधूम, जवजवा, कल, मसूर, तिल, मुग्गा । मास, निप्फाव, कुलत्थ, अलिसंद, सतीण, पलिमंथा, अयसी, कुसुंभ, को, कंगू, रालग, वरसामग, कोदूसा, सण, सरिसव, मूलग, बीय, जे यावऽण्णा तहप्पगारा ॥ (११) जलरुह जीवा. पडि. ३, सु. ९८ १. सम. ८४, सु. १३ प से किं तं जलरुहा ? उ. जलरुहा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा द्रव्यानुयोग - (१) (९) हरित प्र. हरित (वनस्पतियां) कितने प्रकार की हैं ? उ. हरित वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथाअध्यावरोह, व्युदान, हरितक तथा तान्दुलेयक, तृण, वस्तुल, पारक, माजर, पाती, बिल्ली और पालक दकपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाक, माण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्लशाक और जीवान्तक । तुलसी, कृष्ण, उदार, फानेयक और आर्यक, भुजनक, चोरक, दमनक, मरुचक, शतपुष्पी तथा इन्दीवर । अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं वे सब हरित (हरी या तिलोती) के अन्तर्गत समझनी चाहिए। यह हरित वनस्पतियों की प्ररूपणा हुई। प्र. भन्ते ! हरितकाय कितने प्रकार के हैं ? तथा हरितकाय कितने सौ प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! हरितकाय तीन प्रकार के हैं एवं प्रभेदों की अपेक्षा हरितकाय तीन सौ प्रकार के कहे गये हैं। वृन्तबद्ध फल हजार प्रकार के हैं। नालबद्ध फल हजार प्रकार के हैं। ये सब हरितकाय में ही सम्मिलित है। इस प्रकार सम्यग् जानने पर, सम्यग् विचारने पर, सम्यग् प्रकार से देखने पर, सम्यग् प्रकार से चिन्तन करने पर, वे इन दो कार्यों में ही सम्मिलित होते हैं, यथा सकाय में और स्थावरकाय में। इस प्रकार पूर्वापर विचार करने पर समस्त जीवों की अपेक्षा से चौरासी लाख योनियां प्रमुख हैं, ऐसा कहा है। (१०) औषधी प्र. औषधियां कितने प्रकार की होती हैं ? उ. औषधियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथा शाली, ग्रीहि, गोधूम (गेहू), जी कलाय (चणा), मसूर, तिल, मूंग, माघ, निष्याव, कुलत्य, अलिसन्द, सत्तीण, पलियन्थ । अलसी, कुसुम्भ, कोदों, कंगू, राल, वरश्यामाक और कोदूस, क्षण, सरसों, मूलक बीज ये और इसी प्रकार की अन्य जो भी (वनस्पतियां) है ( उन्हें भी औषधियों में गिनना चाहिए।) यह औषधियों का वर्णन हुवा। (११) जलरुह प्र. जलरुह (वनस्पतियां) कितने प्रकार की हैं ? उ. जल में उत्पन्न होने वाली (जलरुह) वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथा
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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