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________________ जीव अध्ययन कंगूया कहुइया कक्कोडइ कारियल्लई सुंभगा। कुवधा (या)य वागली पाववल्लि तह देवदारू य॥ अफ्फोया अइमुत्तय णागलया कण्ह-सूरवल्ली य। संघट्ट सुमणसा विय जासुवण कुविंदवल्ली य॥ मुद्दिय अप्पा भल्ली छीरविराली जियंति गोवाली। पाणी मासावल्ली गुंजावल्ली य वच्छाणी॥ ससबिंदु गोत्तफुसिया गिरिकण्णइ मालुया य अंजणई। दहफुल्लइ कागणि मोगली य तह अक्कबोंदि य॥२८-३२॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा, से तं वल्लीओ। (६) पव्वगाप. से किं तं पव्वगा? उ. पव्वगा अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा इक्खू य इक्खुवाडी वीरण तह एक्कडे भमासे य॥ सुंब सरे य वेत्ते तिमिरे सयपोरगणले य॥ वंसे वेलू कणए कंकावंसे य चाववंसे य। उदए कुडए विमए कंडावेलू य कल्लाणे ॥३३-३४॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा, १४१ ) कंगुका, कढुकिका, कर्कोटकी, कारवेल्लकी, सुभगा, कुवधा वागली, पापवल्ली तथा देवदार । अप्फोया, अतिमुक्तका, नागलता, कृष्णसूरवल्ली, संघट्टा, सुमनसा, जासुवन और कुविन्दवल्ली। मुद्वीका, अप्पा, भल्ली, क्षीरविराली, जीयंती, गोपाली, पाणी, मासावल्ली, गुंजावल्ली और वच्छाणी। शशविंदु, गोत्रस्पृष्टा, गिरिकर्णकी, मालुका, अंजनकी, दहस्फोटकी, काकणी, मोकली, अर्कबोन्दी। इसी प्रकार की अन्य जितनी भी वनस्पतियां हैं, उन सबको वल्लियां समझना चाहिए। यह वल्लियों की प्ररूपणा हुई। (६) पर्वकप्र. पर्वक वनस्पतियां कितने प्रकार की हैं ? उ. पर्वक वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथाइक्षु और इक्षुवाटी, वीरण तथा एकड़,भमास,सूंठ (सुंब) शर और वेत्र, तिमिर, शतपर्वक और नल। वंश, वेलू, कनक, कंकावंश और चापवंश, उदक, कुटज, विमक, कण्डा, वेलू और कल्याण। और भी जो इसी प्रकार की वनस्पतियां हैं, (उन्हें पर्वक में ही समझना चाहिए।) यह पर्वकों की प्ररूपणा हुई। (७) तृण प्र. तृण कितने प्रकार के हैं ? उ. तृण अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा सेटिक, भक्तिक, होत्रिक, दर्भ, कुश और पर्वक, पोटकिला, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितांश, शुकवेद और क्षीरतुष। एरण्ड, कुरुविन्द, कक्षट, सूंठ, विभंगू और मधुरतृण, लवणक, शिल्पिक और सुकली, (इन्हें) तृण जानना चाहिए। जो अन्य इसी प्रकार के हैं उन्हें भी तृण समझना चाहिए। यह तृणों की परूपणा हुई। (८) वलयप्र. वलय जाति की वनस्पतियां कितने प्रकार की हैं ? उ. वलय-वनस्पतियां अनेक प्रकार की कही गई हैं, यथा ताल, तमाल, तर्कली, तेतली, सार, सारकल्याण, सरल, जावती, केतकी, कदली और धर्मवृक्ष। भुजवृक्ष, हिंगुवृक्ष और (जो) लवंगवृक्ष होता है, (इसे वलय) समझना चाहिए। मूंगफली, खजूर और नालिकेरी, (इन्हें भी वलय) समझना चाहिए। अन्य जो भी इसी प्रकार के हैं, (उन्हें भी बलय समझना चाहिए।) यह वलय की प्ररूपणा हुई। सेतं पव्वगा। (७) तणप. से किं तंतणा? उ. तणा अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा सेंडिय भत्तिय होत्तिय डब्भ कुसे पव्वए य पाडेइला। अज्जुण असाढए रोहियसे सुय वेय खीर तुसे॥ एरंडे कुरूविंदे कक्खड सुंठे तहा विभंगूय। महुरतण लुणय सिप्पिय बोधव्वे सुंकलितणा य॥३५-३६॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा, सेतं तणा। (८) वलयाप. से किं तं वलया? उ. वलया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा ताल तमाले तक्कलि तेयली सारे यसारकल्लाणे। सरले जावति केयइ कंदलितह धम्मरुक्खे य॥ भुयरूक्ख हिंगुरूक्खे लवंगरूक्खे य होंति बोधव्वे। पूयफली खज्जूरी बोधव्वा नालिएरी य॥३७-३८॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा, सेतं वलया।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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