SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० द्रव्यानुयोग-(१) २. अप्रथम समय नैरयिक, ३. प्रथम समय तिर्यञ्च योनिक, ४. अप्रथम समय तिर्यञ्च योनिक, ५. प्रथम समय मनुष्य, ६. अप्रथम समय मनुष्य, ७. प्रथम समय देव, ८. अप्रथम समय देव, ९. सिद्ध। (९) दस प्रकार उनमें से जो सर्व जीवों को दस प्रकार का कहते हैं वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. पृथ्वीकायिक, २. अकायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय, ९. पंचेन्द्रिय १०. अनिन्द्रिय। २. अपढमसमयणेरइया, ३. पढमसमय तिरिक्खजोणिया, ४. अपढमसमयतिरिक्खजोणिया, ५. पढमसमयमणूसा, ६. अपढमसमयमणूसा, ७. पढमसमयदेवा, ८. अपढमसमयदेवा, ९. सिद्धा या -जीवा. पडि.९, सु.२५७ (९) दसविहत्तं तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-“दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता", ते एवमाहंसु,तं जहा१. पुढविकाइया, २. आउकाइया, ३. तेउकाइया, ४. वाउकाइया, ५. वणस्सइकाइया, ६. बेइंदिया, ७. तेइंदिया, ८. चउरिंदिया, ९. पंचेंदिया, १०. अणिंदिया।२ . -जीवा. पडि. ९, सु. २५८ अहवा दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. पढमसमयणेरइया, २. अपढमसमयणेरइया, ३. पढमसमयतिरिक्खजोणिया, ४. अपढमसमयतिरिक्खजोणिया, ५. पढमसमयमणूसा, ६. अपढमसमयमणूसा, ७. पढमसमयदेवा, ८. अपढमसमयदेवा, ९. पढमसमयसिद्धा, १०. अपढमसमयसिद्धा।३ -जीवा. पडि.९, सु.२५९ २२. जीवपण्णवणाया दुविहत्तं प. से किं तं जीवपण्णवणा? उ. जीवपण्णवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. संसारसमावण्णजीवपण्णवणा य, २. असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य।। -पण्ण.प.१,सु.१४ २३. असंसार समावण्ण जीवपण्णवणाया भेयप्पभेया प. से किं तं असंसारसमावण्ण जीवपण्णवणा? अथवा सभी जीव दस प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. प्रथम समय नैरयिक, २. अप्रथम समय नैरयिक, ३. प्रथम समय तिर्यञ्च, ४. अप्रथम समय तिर्यञ्च, ५. प्रथम समय मनुष्य, ६. अप्रथम समय मनुष्य, ७. प्रथम समय देव, ८. अप्रथम समय देव, ९. प्रथम समय सिद्ध, १०. अप्रथम समय सिद्ध। २२. जीव प्रज्ञापना के दो प्रकार प्र. वह जीव प्रज्ञापना क्या है? उ. जीवप्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है, यथा १. संसारसमापन्न (संसारी) जीवों की प्रज्ञापना, २. असंसार समापन्न (मुक्त) जीवों की प्रज्ञापना। २३. असंसार समापन्न जीव प्रज्ञापना के भेद प्रभेद प्र. वह असंसारसमापन्नजीव प्रज्ञापना क्या है? १. ठाणं.अ.९,सु.६६६/१२ २. ठाणं.अ.१०,सु.७७१/२ ३. (क) जीवा. पडि.९,सु.२३१ (ख) ठाणं.अ.१०,सु.७७१/३ ४. (क) जीवा. पडि.१,सु.६ (ख) उत्त.अ.३६ गा.४८ (ग) सम.सम.सु.१४९
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy