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________________ जीव अध्ययन ११९ (६) सात प्रकार उनमें से जो सर्व जीवों को सात प्रकार का कहते हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. त्रसकायिक, ७. अकायिक। अथवा सभी जीव सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कृष्णलेशी, २. नीललेशी, ३. कापोतलेशी, ४. तेजस्लेशी, ५. पद्मलेशी, ६. शुक्ललेशी, ७. अलेशी। (६) सत्तविहत्तं तत्थ जे ते एवमाहंसु ‘सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता', ते एवमाहंसु, तं जहा१. पुढविकाइया २. आउकाइया, ३. तेउकाइया, ४. वाउकाइया, ५. वणस्सइकाइया, ६. तसकाइया, ७. अकाइया। -जीवा. पडि.९, सु. २५२ अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा१. कण्हलेस्सा, २. नीललेस्सा, ३. काउलेस्सा, ४. तेउलेस्सा, ५. पम्हलेस्सा, ६. सुक्कलेस्सा, ७. अलेस्सा। -जीवा. पडि. ९ सु. २५३ (७) अट्ठविहत्तं तत्थ णं जे ते एवमाहंसु 'अट्ठविहा सव्वजीवा' पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा१. आभिणिबोहियणाणी,२. सुयणाणी, ३. ओहिणाणी, ४. मणपज्जवणाणी, . ५. केवलणाणी, ६.. मइअण्णाणी, ७. सुयअण्णाणी, ८. विभंगणाणी।२ -जीवा. पडि.९, सु. २५४ -जावा. पा. . अहवा अट्टविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. नेरइया, २. तिरिक्खजोणिया, ३. तिरिक्खजोणिणीओ, ४. मणुस्सा, ५. मणुस्सीओ, ६. देवा, ७. देवीओ, ८. सिद्धा।३ . -जीवा. पडि.९,सु.२५५ (८) नवविहत्तं तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-"नवविहा सव्वजीवा" ते एवमाहंसु,तं जहा१. एगिदिया, २. बेइंदिया, ३. तेइंदिया, ४. चउरिंदिया, ५. नेरइया, ६. पंचेन्दिय तिरिक्खजोणिया, ७. मणूसा, ८. देवा, ९. सिद्धा। -जीवा. पडि.९,सु.२५६ अहवा नवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. पढमसमयणेरइया, (७) आठ प्रकार उनमें से जो सर्व जीवों को आठ प्रकार का कहते हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मनःपर्यवज्ञानी, ५. केवलज्ञानी, ६. मतिअज्ञानी, ७. श्रुतअज्ञानी, ८. विभंगज्ञानी। अथवा सभी जीव आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. नैरयिक, २. तिर्यंचयोनिक, ३. तिर्यंचयोनिकी, ४. मनुष्य, ५. मानुषी, ६. देव, ७ देवी, ८. सिद्ध। (८) नौ प्रकार उनमें से जो सर्व जीवों को नौ प्रकार का कहते हैं वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. एकेन्द्रिय, २. द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, ४. चतुरिन्द्रिय, ५. नैरयिक, ६. पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, ७. मनुष्य, ८. देव, ९. सिद्ध। अथवा सभी जीव नौ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. प्रथम समय नैरयिक, १. २. ठाणं.अ.७,सु.५६२ ठाणं.अ.८,सु.६४६/१ ३. ४. ठाणं.अ.८,सु.६४६/२ ठाणं.अ.९,सु.६६६/११
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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