SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्याय अध्ययन से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणसीयाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणसीए वि। अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य गुण शीत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट गुणशीत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। जिस प्रकार शीतस्पर्श-स्कन्धों के पर्याय कहे उसी प्रकार उष्ण स्निग्ध और रुक्ष स्पर्शों के पर्याय भी कहने चाहिए। इसी प्रकार परमाणुपुद्गल में इन सभी का प्रतिपक्ष नहीं कहा जाता है यह कहना चाहिए। णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं उसिणनिद्धलुक्खे जहा सीए। परमाणुपोग्गलस्स तहेव पडिवक्खो सव्वेसिं न भण्णइ त्ति भाणियव्यं। -पण्ण.प.५, सु. ५३८-५५३ १६. जघन्यादि प्रदेश वाले स्कन्धों के पर्यायों का परिमाण प्र. भंते ! जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? १६. जहण्णाइपदेसियाणं खंधाणं पज्जव पमाणं- । प. जहण्णपदेसियाणं भंते! खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णपदेसिए खंधे जहण्णपदेसियस्स खंधस्स (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले। (३) ओगाहणट्ठयाए-१. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३.सिय अब्भहिए। जइ हीणे-पदेसहीणे, अह अब्भहिए-पदेसअब्भहिए। (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५) वण्ण,(६) गंध,(७) रस, (८) उवरिल्लचउफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्यप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य प्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है। (३) अवगाहना की अपेक्षा-१. कदाचित् हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो-एक प्रदेश हीन है यदि अधिक है तो-एक प्रदेश अधिक है। (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस तथा (८) अन्तिम चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थान पतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" प्र. भंते ! उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ "जहण्णपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" प. उक्कोसपदेसियाणं भंते! खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ "उक्कोसपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?'' उ. गोयमा! उक्कोसपदेसिए खंधे उक्कोसपदेसियस्स खंधस्स उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" उ. गौतम ! एक उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध से
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy