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________________ गए ह। (८६ द्रव्यानुयोग-(१) (१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) पदेसट्ठयाए तुल्ले। (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वण्णाइ अट्ठफासपज्जवेहि यछट्ठाणवडिए। (५-८) वर्णादि तथा आठ स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि- । "उक्कोसपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" "उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" प. अजहण्णमणुक्कोसपदेसियाणं भंते! खंधाणं केवइया प्र. भंते ! अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) प्रदेशी स्कन्धों के कितने पज्जवा पण्णत्ता? पर्याय कहे गए हैं? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"अजहण्णमणुक्कोसपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा "अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय पण्णत्ता?" कहे गए हैं ?" उ. गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसपदेसिए खंधे अजहण्णमणुक्को- उ. गौतम ! एक मध्यमप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे मध्यमप्रदेशी सपदेसियस्स खंधस्स स्कन्ध से(१) दवट्ठयाए तुल्ले, (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वण्णाइअट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। (५-८) वर्णादि तथा आठ स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा __षट्स्थानपतित है। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"अजहण्णमणुक्कोसपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा "अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम)प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय पण्णत्ता।" कहे गए हैं।" -पण्ण.प.५, सु.५५४ १७. जहण्णाइओगाहणगाणं पोग्गलाणं पज्जव पमाणं- . १७. जघन्यादि अवगाहना वाले पुदगलों के पर्यायों का परिमाणप. जहण्णोगाहणगाणं भंते! पोग्गलाणं केवइया पज्जवा प्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे पण्णत्ता? गए हैं? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प. से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"जहण्णोगाहणगाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा ___ "जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे पण्णत्ता?" गए हैं ?" उ. गोयमा! जहण्णोगाहणए पोग्गले जहण्णोगाहणगस्स उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला पुद्गल, दूसरे जघन्य पोग्गलस्स अवगाहना वाले पुद्गल से(५-८) वण्णाइ उवरिल्लफासेहि य छट्ठाणवडिए। (५-८) वर्णादि और अन्तिम (चार) स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। षट्रस्थानपतित है। -
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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