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________________ ( ८४ अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणसीयाणं भंते! असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणसीयाणं असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणसीए असंखेज्जपदेसिए खंधे जहण्णगुणसीयस्स असंखेज्जपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, . (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, सीयफासपज्जवेहिं तुल्ले, उसिण-निद्ध-लुक्ख-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणसीयाणं असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणसीए वि। द्रव्यानुयोग-(१)] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण शीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा चतुस्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, शीत स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, उष्ण, स्निग्ध एवं रुक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुण शीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्यगुणशीत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य गुण शीत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५--८) वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष सात स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव, णवर-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणसीयाणं भंते! अणंतपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णगुणसीयाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णगुणसीए अणंतपदेसिए खंधे जहण्णगुण सीयस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, सीयफासपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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