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________________ ( ७८ द्रव्यानुयोग-(१) (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) ठिईए तुल्ले, (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५-८) वण्णाइ अट्ठफासेहि य छट्ठाणवडिए। (५-८) वर्णादि तथा आठ स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जहण्णठिईयाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता "जघन्य स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय पज्जवा पण्णत्ता।" कहे गए हैं।" एवं उक्कोसठिईए वि, इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जानने चाहिए। अजहण्णमणुक्कोसठिईए वि एवं चेव, अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है। णवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। -पण्ण.प.५,सु.५३२-५३७ १५. जहण्णाइ गुणवण्ण-गंध-रस-फासयाणं परमाणुपोग्गलाणं . १५. जघन्यादि गुण-वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श वाले परमाणुपदगलों के पज्जव पमाणं पर्यायों का परिमाणप. जहण्णगुणकालयाणं भंते! परमाणुपोग्गलाणं केवइया प्र. भंते ! जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"जहण्णगुणकालयाणं परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा ___ "जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए पण्णत्ता?" हैं?" गोयमा! जहण्णगुणकालए परमाणुपोग्गले जहण्णगुण- उ. गौतम ! एक जघन्यगुण काला परमाणुपुद्गल, दूसरे कालयस्स परमाणुपोग्गलस्स जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गल से(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) पदेसट्ठयाए तुल्ले, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले,अवसेसा वण्णा णत्थि। (५) कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष वर्ण नहीं उ. है। (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णगुणकालयाणं परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसगुणकालए वि। (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए एवमजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि, इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले परमाणुपुद्गलों के पर्याय कहना चाहिए। इसी प्रकार अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले परमाणुपुद्गलों के पर्यायों का भी कथन करना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्यगुण काले द्विप्रदेशिक स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। णवर-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। प. जहण्णगुणकालयाणं भंते! दुपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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