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________________ - ७७ ) पर्याय अध्ययन (३) ओगाहणट्ठयाए दुट्ठाणवडिए, (४) ठिईए तुल्ले, (५-८) वण्णाइ चउफासेहि यछट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसठिईए वि, अजहण्णमणुक्कोसठिईए वि एवं चेव, णवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिए। प. जहण्णठिईयाणं भंते ! असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णठिईअसंखेज्जपदेसिए खंधे जहण्णठिईयस्स असंखेज्जपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए चउट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए तुल्ले, (५-८) वण्णाइ उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिए। (३) अवगाहना की अपेक्षा भी द्विस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५-८) वर्णादि तथा चारःस्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जानने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५-८) वर्णादि तथा अन्तिम चार स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कष्ट स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसठिईए वि, अजहण्णमणुक्कोसठिईए वि एवं चेव, णवर-ठिईए चउट्ठाणवडिए। प. जहण्णठिईयाणं भंते! अणंतपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा! जहण्णठिईए अणंतपदेसिए खंधे जहण्णठिईयस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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