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________________ णवरं-ठिईए चउठाणवडिए। प. जहण्णठिईयाणं भंते ! दुपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णठिईए दुपदेसिए खंधे जहण्णठिईयस्स दुपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए-१.सिय हीणे, २.सिय तुल्ले, ३. सिय अब्भहिए। जइ हीणे-पदेसहीणे, अह अब्भहिए-पदेसअब्भहिए, (४) ठिईए तुल्ले, (५-८) वण्णाइ चउफासेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णता।" एवं उक्कोसठिईएवि। द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है।' प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं? प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला द्विप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा-१. कदाचित् हीन, २. कदाचित् तुल्य, ३. कदाचित् अधिक है, यदि हीन है तो-एक प्रदेश हीन है, यदि अधिक है तो-एक प्रदेश अधिक है। (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५-८) वर्णादि तथा चार स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। • इसी प्रकार दशप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त पर्याय कहने चाहिए। विशेष-इसमें एक-एक प्रदेश की क्रमशः परिवृद्धि करनी चाहिए। अवगाहना के तीनों आलापकों में दशप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त नौ प्रदेशों की वृद्धि होती है। प्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेश की अपेक्षा द्विस्थानपतित है, अजहण्णमणुक्कोसठिईए वि एवं चेव, णवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिए। एवं जाव दसपदेसिए, णवर-पदेसपरिवुड्ढीकायव्वा। ओगाहणट्ठयाए तिसु वि गमएसु जाव दसपदेसिए नव पदेसा वहिज्जति। प. जहण्णठिईयाणं भंते ! संज्ज्जपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा !जहण्णठिईए संखेज्जपदेसिए खंधे जहण्णठिईयस्स संखेज्जपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए दुट्ठाणवडिए,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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