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________________ पर्याय अध्ययन "जहण्णोगाहणगाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, णवरं-ठिईए वि तुल्ले। प. अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! अणंतपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए अणंतपदेसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ अट्ठफासेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" -पण्ण. प.५, सु. ५२५-५३१ १४. जहण्णाइ ठिइयाणं परमाणुआईणं पज्जव पमाणंप. जहण्णठिईयाणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णठिईयाणं परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णठिईए परमाणुपोग्गले जहण्णठिईयस्स परमाणुपोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले (४) ठिइए तुल्ले, (५-८) वण्णाइ दुफासेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसठिईए वि, । ७५ ) "जघन्य अवगाहना वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं।" उत्कृष्ट अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी इसी प्रकार जानने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा तुल्य है। प्र. भंते ! अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाला अनन्त प्रदेशी स्कन्ध दूसरे मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्णादि और आठ स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है किअजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" १४. जघन्यादि स्थिति वाले परमाणु आदि के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए है?" उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला परमाणुपुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है। (५-८) वर्णादि तथा दो स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के पर्याय भी कहने चाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। अजहण्णमणुक्कोसठिईए विएवं चेव,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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