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________________ ७४ नवरं सङ्काणे दुडाणवडिए । प. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता । प से केणणं भते ! एवं दुच्चर " जहण्णोगाहणगाणं असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए असंखेज्जपदेसिए खंधे जहणोगाहणगस्स असंखेज्जपदेसियस्स खंधस्स (१) दव्वट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसयाए चउड्डाणचडिए. (३) ओगाहणट्टयाए तुल्ले, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, ( ५ - ८) वण्णाइ उवरिल्लफासेहि य छट्टाणवडिए । से तेणद्वेणं गोयमां ! एवं वुच्चइ"जहणोगाहणगाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ।" एवं उक्कोसोगाहणए वि, अजहणमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, वरं सङ्काणे उड्डाणवडिए । प. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! अणंतपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । प. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणगाणं अणतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए अनंतपदेखिए संधे जहण्णोगाहणगस्स अणतपदेसियस्स खंधस्स (१) दव्वट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए छढाणवडिए, असंखेज्जपदेखियाणं वंधाणं (३) ओगाहणट्टयाए तुल्ले, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ उवरिल्लचउफासेहि य छद्राणवडिए । से तेणद्रेण गोयमा ! एवं बुच्चद्द द्रव्यानुयोग - (१) विशेष-स्वस्थान में (अवगाहना की अपेक्षा) द्विस्थानपतित है। प्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि " जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध्र से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुः स्थानपतित है, (५-८) वर्णादि तथा अन्तिम चार स्पर्शो की अपेक्षा घदस्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि " जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" उत्कृष्ट अवगाहना वाले (असंख्यातप्रदेशी) स्कन्धों के पर्यायों के लिए भी इसी प्रकार जानना जाहिए। अजघन्य अनुत्कृष्ट मध्यम अवगाहना वाले पर्यायों के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष- स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है। प्र. भंते! जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि " जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वण.. तथा अन्तिम चार स्पर्शो की अपेक्षा षट्स्थानपान है। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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