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________________ पर्याय अध्ययन से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"एगसमयठिइयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" एवं जाव दससमयठिईए। - ७१ ) इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये संखेज्जसमयठिईयाणं एवं चेव। णवरं-ठिईए दुट्ठाणवडिए। असंखेज्जसमयठिईयाणं एवं चेव। इसी प्रकार दस समय की स्थिति वाले पुद्गल पर्यन्त पर्याय कहने चाहिए। संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा द्विस्थानपतित है। असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है। णवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिए। __ -पण्ण. प.५,सु.५१५-५१८ १२. एगाइगुणवण्ण-गंध-रस-फासयाणं पोग्गलाणं पज्जव पमाणं- १२. एकादिगुणयुक्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुदगलों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! एक गुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "एक गुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" प. एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। अट्ठहिं फासेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं जाव दसगुणकालए। उ. गौतम ! एक गुण काला एक पुद्गल दूसरे एक गुण काले पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, २ (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है एवं अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा (भी) षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"एक गुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" इसी प्रकार दश गुण काले (पुद्गल) पर्याय पर्यन्त कहने चाहिए। संख्यातगुण काले (पुद्गलों) के पर्याय भी इसी प्रकार जानने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में द्विस्थानपतित है। इसी प्रकार असंख्यातगुण काले (पुद्गलों) के पर्याय कहने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है। इसी प्रकार अनन्तगुण काले (पुद्गलों) के पर्याय भी जानने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव, णवरं-सट्ठाणे दुट्ठाणवडिए। एवं असंखेज्जगुणकालए वि, णवरं-सट्ठाणे चउट्ठाणवडिए। एवं अणंतगुणकालए वि, णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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