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________________ ( ७० उ. गोयमा ! संखेज्जपदेसोगाढे पोग्गले संखेज्जपदेसोगाढस्स पोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणठ्ठयाए दुट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिए। द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! एक संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल दूसरे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा द्विस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्णादि तथा अन्तिम चार स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि“संख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।" से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"संखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" प. असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णता?" उ. गोयमा ! असंखेज्जपदेसोगाढे पोग्गले असंखेज्ज पदेसोगाढस्स पोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ अट्ठफासेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" -पण्ण.प.५,सु.५११-५१४ ११.एगाइसमयठिईयाणं पोग्गलाणं पज्जव पमाणंप. एगसमयठिईयाणं पोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ “एगसमयठिईयाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! एगसमयठिइए पोग्गले एगसमयठिईयस्स पोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए तुल्ले, (५-८) वण्णाइअट्ठफासेहि य छट्ठाणवडिए। प्र. भंते ! असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! एक असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल दूसरे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्णादि तथा आठ स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।' ११. एकादि समय की स्थिति वाले पुद्गलों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं?" उ. गौतम ! एक समय की स्थिति वाला एक पुद्गल, दूसरे एक समय की स्थिति वाले एक पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है, (५-८) वर्णादि तथा आठ स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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