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________________ पर्याय अध्ययन - ६९ ) प्र. भंते ! अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? प. अणंतपदेसियाणं खंधाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अणंतपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! अणंतपदेसिए खंधे अणंतपदेसियस्स खंधस्स (१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। से तेणतुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अणन्तपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" -पण्ण. प.५,सु.५०५-५१० १०.एगाइपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं पज्जव पमाणं प. एगपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ “एगपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ?" उ. गौतम ! एक अनन्तप्रदेशी स्कन्ध दूसरे अनन्त प्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।" उ. गोयमा ! एगपदेसोगाढे पोग्गले एगपदेसोगाढस्स पोग्गलस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (४) ठिइए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ उवरिल्ल चउफासेहि यछट्ठाणवडिए। १०. एकादि प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों के पर्यायों का परिमाण प्र. भंते ! एक प्रदेश में अवगाढ़ पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि “एक प्रदेश में अवगाढ़ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं?' उ. गौतम ! एक प्रदेश में अवगाढ़ एक पुद्गल, दूसरे एक प्रदेश में अवगाढ़ एक पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्णादि तथा अन्तिम चार स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"एक प्रदेश में अवगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।" इसी प्रकार द्विप्रदेशावगाढ से दशप्रदेशावगाढ स्कन्ध पर्यन्त पर्यायों के लिए कहना चाहिए। प्र. भंते ! संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ?" से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"एगपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवंदुपदेसोगाढे विजाव दसपदेसोगाढे वि। प. संखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "संखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?"
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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