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________________ ६८ एवं जाव दसपदेसिए, णवरं - ओगाहणाए पदेसपरिवुड्ढी कायव्वा जाव दसपदेसिए नवपदेसहीणे ति । प. संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । प से केणद्वेगं भते ! एवं बुच्चइ "संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! संखेज्जपदेसिए खंधे संखेज्जपदेसियस्स खंधस्स (१) दव्यट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टाए - १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३. सिय अब्भहिए। जइहीणे १. संखेज्जइभागहीणे वा, २. संखेज्जइगुणहीणे वा । अह अब्भहिए १. संखेज्जइ भाग अब्भहिए वा, २. संखेज्जगुण अव्महिए वा । (३) ओगाहणट्टयाए विदुट्ठाणवडिए । (४) ठिइए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइउवरिल्ल चउफासपज्जवेहि य छाडिए । से तेण गोयमा ! एवं बुच्चइ "संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" प. असंखेज्जपदेसियाणं स्वधाणं भंते! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ "असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा असंखेज्जपदेसिए संधे असंखेज्जपदेसियस्स स्वधरस (१) दव्वट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए चउट्ठाणवडिए, (३) ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) वण्णाइ उवरिल्ल चउफासेहि य छट्ठाणवडिए । से तेण्डेण गोयमा ! एवं बुच्चइ "असंखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता।" द्रव्यानुयोग - (१) इसी प्रकार दशप्रदेशिक स्कन्धों पर्यन्त पर्यायविषयक कथन करना चाहिए। विशेष - अवगाहना की अपेक्षा प्रदेशों की (क्रमशः ) वृद्धि करना चाहिए, यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध नौ प्रदेश-हीन तक होता है। प्र. भंते! संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. प्र. गौतम ! अनन्त पयार्य कहे गए हैं। भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम एक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा-१. कदाचित हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो १. संख्यातवें भाग हीन है, २. संख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो १. संख्यातवें भाग अधिक है, २. संख्यातगुण अधिक है। (३) अवगाहना की अपेक्षा भी द्विस्थानपतित है। (४) स्थिति की अपेक्षा चतुस्थानपतित है। (५-८) वर्णादि तथा ऊपर के चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "संख्यात प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं।" प्र. भंते । असंख्यात्प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ?" उ. गौतम एक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध दूसरे असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा चतु:स्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतु:स्थानपतित है, ( ५-८ ) वर्णादि तथा ऊपर के चार स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं। "
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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