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________________ ७२ एवं जहा कालवण्णस्स वत्तव्यया भणिया तहा सेसाण वि वण्ण-गंध-रस-फासाणं वत्तव्वया भाणियव्या जाव अणंतगुणलुक्खे। -पण्ण.प.५, सु. ५१९-५२४ १३. जहण्णोगाहणगाईणं दुपदेसाइयाणं पोग्गलाणं पज्जवपमाणं द्रव्यानुयोग-(१) इसी प्रकार जैसे कृष्णवर्ण वाले (पुद्गलों) के पर्याय कहे वैसे ही शेष सब वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों के पर्याय अनन्तगुण रूक्ष पर्यन्त जानने चाहिए। प. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! दुपदेसियाणं पोग्गलाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए दुपदेसिए खंधे जहण्णो गाहणस्स दुपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५-८) कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, सेसं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिए, सीय-उसिण-णिद्ध-लुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, १३. जघन्य अवगाहना आदि वाले द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों के पर्यायों का परिमाण प्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?" उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला द्विप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) कृष्ण वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, शेष वर्ण, गन्ध और रस के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा भी षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशिक स्कन्ध के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।" उत्कृष्ट अवगाहना वाले भी इसी प्रकार कहने चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध नहीं होते! प्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?" उ. गौतम ! जैसे जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहे उसी प्रकार यहाँ भी कहने चाहिए। इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी कहने चाहिए। इसी प्रकार अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय भी कहने चाहिए। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णोगाहणगाणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव। अजहण्णमणुक्कोसोगाहणओणत्थि। प. जहण्णोगाहणयाणं भंते ! तिपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा!अणंतापज्जवा पण्णत्ता। . प. सेकेणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणयाणं तिपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा !जहा दुपदेसिए जहण्णोगाहणए, उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव। एवं अजहण्णमणुकोसोगाहणए वि। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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