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________________ ५० द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-जिसके अज्ञान है, उसके ज्ञान नहीं होते हैं। प्र. भंते ! जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गये उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं?" णवरं-जस्स अण्णाणा तस्स णाणा न भवंति। प. जहण्णचक्खुदंसणीणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा !अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णचक्खुदंसणीणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णचक्खुदंसणी णं नेरइए जहण्णचक्खुदंसणीस्स नेरइयस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणठ्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए-चउट्ठाणवडिए, (५) वण्ण,(६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, (९) तिहिं णाणपज्जवेहिं, (१०) तिहिं अण्णाणपज्जवेहिं छट्ठाणयडिए, (११) चक्खुदंसणपज्जवेहि तुल्ले, अचक्खुदंसणपज्जवेहि, ओहिदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णचक्खुदंसणीणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसचक्खुदंसणी वि। उ. गौतम ! एक जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिक, दूसरे जघन्य . चक्षुदर्शनी नैरयिक से (१). द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण,(६) गन्ध, (७) रस और (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तथा (९) तीन ज्ञान, (१०) तीन अज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। (११) चक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिको के अनन्त पर्याय हैं।" अजहण्णमणुक्कोसचक्खुदंसणी वि एवं चेव। णवरं-सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं अचक्खुदंसणी वि,ओहिदसणी वि। . दं. २-११. असुरकुमाराईणं ओगाहणाइ विवक्खया पज्जवपमाणंप. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असुरकुमाराणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणगाणं असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा !जहण्णोगाहणए असुरकुमारे जहण्णोगाहणगस्स असुरकुमारस्स(१) दव्वठ्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, इसी प्रकार उत्कृष्ट चक्षुदर्शनी नैरयिकों (के पर्याय भी समझना चाहिए।) अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) चक्षुदर्शनी नैरयिकों के (पर्याय) भी इसी प्रकार जानने चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार अचक्षुदर्शनी नैरयिकों एवं अवधिदर्शनी नैरयिको के पर्याय जानने चाहिए। दं.२-११. अवगाहनादि की अपेक्षा से असुरकुमारादि के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि. "जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला असुरकुमार, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमार से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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