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________________ पर्याय अध्ययन (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए। (५.८.) वण्णाइपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, (९) आभिणिबोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाणपज - ५१ ) (३) अवगाहना की अपेक्षा भी तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५-८) वर्ण आदि की पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (९) आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान के पर्यायों, (१०) तीन अज्ञान के पर्यायों तथा (११) तीन दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य अवगाहना वाले असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं।" (१०) तिहि अण्णाणपज्जवेहि, (११) तिहिं दंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णोगाहणगाणं असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसोगाहणए वि। एवं अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि। णवर-सट्ठाणे चउट्ठाणवडिए। अवसेसं जहाणेरइए। एवं जाव थणियकुमारा। दं. १२-१६. पुढविकाइयाण-ओगाहणाइ विवक्खया पज्जवपमाणंप. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पुढविकाइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंतापज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए पुढविकाइए जहण्णोगाहणस्स पुढविकाइयस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए, (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना के विषय में भी समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले असुरकुमारों के पर्याय जान लेना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में चतुःस्थानपतित हैं। शेष वर्णन नारक के समान है। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त पर्यायों का कथन करना चाहिए। दं. १२-१६. अवगाहनादि की अपेक्षा से पृथ्वीकायिकादि के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं ? उ. गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला एक पृथ्वीकायिक दूसरे जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस और (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, (९) दो अज्ञानों (मति-श्रुत) की अपेक्षा और, (१०) अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा छः स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों का कथन भी करना चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्याय भी ऐसे ही समझने चाहिए। (९) दोहि अण्णाणेहि, (१०) अचक्खुदंसणपज्जवेहि यछट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसोगाहणए वि। अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए विएवं चेव।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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