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________________ पर्याय अध्ययन (९) नाण विवक्खा १. आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं, २. सुयणाणपज्जवेहिं, ३. ओहिणाणपज्जवेहिं यछट्ठाणवडिए। (१०) अण्णाण विवक्खा १. मइअण्णाणपज्जवेहिं, २. सुयअण्णाणपज्जवेहिं, ३. विभंगणाणपज्जवेहिं यछट्ठाणवडिए। (११) दंसण विवक्खा १. चक्खुदंसणपज्जवेहिं, २. अचक्खुदंसणपज्जवेहि, ३. ओहिदंसणपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइयाणं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" दं.२-११.असुरकुमाराईणं पज्जवपमाणंप. असुरकुमाराणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ “असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! असुरकुमारे असुरकुमारस्स (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पएसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए। (९) ज्ञान की अपेक्षा १. आभिनिबोधिकज्ञान पर्यायों, २. श्रुतज्ञानपर्यायों, ... ३. अवधिज्ञान पर्यायों, - (१०) अज्ञान की अपेक्षा १. मति-अज्ञानपर्यायों, २. श्रुत-अज्ञानपर्यायों, ३. विभंगज्ञानपर्यायों। (११) दर्शन की अपेक्षा १. चक्षुदर्शनपर्यायों, २. अचक्षुदर्शनपर्यायों, ३. अवधिदर्शनपर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नारकों के पर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त कहे गये हैं।" दं.२-११.असुरकुमारादि के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___ 'असुरकुमारों के अनन्त पर्याय हैं ?' उ. गौतम ! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से (१) द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, . (२) प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा से चार स्थानपतित (हीनाधिक) है, (४) स्थिति की अपेक्षा से भी चार स्थानपतित है। (५) कृष्ण वर्ण पर्यायों से शुक्लवर्ण-पर्यायों पर्यन्त छःछ स्थान पतित है। (६) १.सुरभिगन्ध और २.दुरभिगन्ध के पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। (७) तिक्तरस पर्यायों से यावत् मधुररस- पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। (८) कर्कशस्पर्श-पर्यायों से यावत् रुक्षस्पर्श पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। (९) १. आभिनिबोधिकज्ञान-पर्यायों, २. श्रुतज्ञान-पर्यायों, ३. अवधिज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। (१०) १. मति-अज्ञान पर्यायों, २. श्रुत-अज्ञान-पर्यायों, ३. विभंगज्ञान-पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। (११) १. चक्षुदर्शनःपर्यायों २. अचक्षुदर्शन-पर्यायों, ३. अवधिदर्शन-पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थानपतित है। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि"असुरकुमारों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं।" (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए। (५) कालवण्णपज्जवेहिं जाव सुकिल्लवणपज्जवेहि छट्ठाणवडिए। (६) सुब्भिगंधपज्जवेहिं, २.दुब्भिगंधपज्जवेहि छट्ठाणवडिए। (७).तित्तरसपज्जवेहिं जाव महुररसपज्जवेहि छट्ठाणवडिए। (८) कक्खडफासपज्जवेहिं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। (९) १. आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं, २. सुयणाणपज्जवेहिं, ३.ओहिणाणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। (१०)१. मइअण्णाणपज्जवेहिं,२.सुयअण्णाणपज्जवेहि,३.विभंगणाणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए। (११)१.चक्खुदंसणपज्जवेहिं,२. अचक्खुदंसणपज्जवेहिं, ३.ओहिदंसणपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।"
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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