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________________ एवं जाव थणियकुमारा। दं. १२. पुढविकाइयाणं पज्जवमाणंप. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। . प. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ "पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! पुढविकाइए पुढविकाइयस्स (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणठ्ठयाए १.सिय हीणे,२.सियतुल्ले, ३.सिय अमहिए जइहीणे१. असंखेज्जइभागहीणे वा,२. संखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा, ४. असंखेज्जगुणहीणे वा। अह अब्भहिए१. असंखेज्जइभागअब्भहिए वा, २. संखेज्जइभागअब्महिए वा, ३. संखेज्जगुणअब्भहिए वा, ४. असंखेज्जगुणअब्भहिए वा। (४) ठिईए-तिट्ठाण वडिएरे१. सिय हीणे,२.सिय तुल्ले, ३.सिय अब्भहिए द्रव्यानुयोग-(१) इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त (प्रत्येक के अनन्त पर्याय) कहने चाहिए। दं.१२. पृथ्वीकायिकों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम !(उनके) अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा भी तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा, १. कदाचित् हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो१. असंख्यातवें भाग हीन है, २. संख्यातवें भाग हीन है, ३. संख्यातगुण हीन है, ४. असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. असंख्यातवें भाग अधिक है २. संख्यातवें भाग अधिक है, ३. संख्यात गुण अधिक है, ४. असंख्यात गुण अधिक है। (४) स्थिति की अपेक्षा-त्रिस्थान पतित हैं। १. कदाचित् हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो१.असंख्यातवें भाग हीन है, २. संख्यातवें भाग हीन है,३. संख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. असंख्यातवें भाग अधिक है, २. संख्यातवें भाग अधिक है, ३. संख्यातगुण अधिक है। (५) वर्ण (६) गंध, (७) रस, (८) स्पर्श, (९) मति-अज्ञान (१०) श्रुत-अज्ञान एवं (११) अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से (एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से) छः स्थान पतित हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"पृथ्वीकायिकों के अनन्त पर्याय हैं।" दं.१३.अकायिकों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! अकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। जइ हीणे१. असंखेज्जभागहीणे वा, २. संखेज्जभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा। अह अब्भहिए१. असंखेज्जभागअब्भहिए वा, २. संखेज्जभागअब्महिए वा, ३. संखेज्जगुणअब्भहिए वा। (५) वण्ण, (६) गंध,(७) रस, (८) फास पज्जवेहि(९) मइअण्णाणपज्जवेहि, (१०) सुयअण्णाणपज्जवेहिं, (११) अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" दं.१३.आउकाइयाणं पज्जव पमाणंप. आउकाइयाणं भंते! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। १. पृथ्वीकाय से वनस्पतिकाय पर्यन्त ९वां ज्ञान स्थान नहीं है। अतः इनमें दस स्थान हैं। २. त्रिस्थानपतित का सर्वत्र यह अर्थ जानना चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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