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________________ ४० जइ हीणे१. असंखेज्जइभागहीणे वा, २. संखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा, ४. असंखेज्जगुणहीणे वा, अह अब्भहिए१. असंखेज्जइभागमभहिए वा, २. संखेज्जइभागमब्भहिए वा, ३. संखेज्जगुणमब्भहिए वा, ४. असंखेज्जगुणमब्भहिए वा। (५) वण्ण विवक्खा१. कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्महिए, जइहीणे१. अणंतभागहीणे वा, २. असंखेज्जइभागहीणेवा, ३. संखेज्जइभागहीणे वा, ४. संखेज्ज गुणहीणे वा, ५. असंखेज्ज गुणहीणे वा, ६.अणंतगुणहीणे वा।' अह अब्भहिए१. अणंतभागमब्भहिए वा, २. असंखेज्जइभागमब्महिए वा, ३. संखेज्जइभागमब्भहिए वा, ४. संखेज्जगुणमब्महिए वा, ५. असंखेज्जगुणमब्भहिए वा, ६. अणंतगुणमब्भहिए वा। . एवं २.णीलवण्णपज्जवेहि,३. लोहियवण्णपज्जवेहिं, ४.हालिद्दवण्णपज्जवेहि, ५. सुक्किल्लवण्णपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। (६) गंध विवक्खा१. सुब्मिगंधपज्जवेहि, (२) दुभिगंधपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए, (७) रस विवक्खा १. तित्तरसपज्जवेहिं, (२) कडुयरसपज्जवेहि, ३. कसायरसपज्जवेहि, (४) अंबिलरसपज्जवेहिं, ५. महुररसपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। (८) फास विवक्खा १. कक्खडफासपज्जवेहिं, २. मउयफासपज्जवेहिं, ३. गरुयफासपज्जवेहिं, ४. लहुयफासपज्जवेहि, ५. सीयफासपज्जवेहिं, ६. उसिणफासपज्जवेहिं, ७. निद्धफासपज्जवेहि, ८. लुक्खफासपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिए। - द्रव्यानुयोग-(१) यदि हीन हैं तो१. असंख्यातवें भाग हीन है,२. संख्यातवें भाग हीन है, ३. संख्यातगुण हीन है, ४. असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. असंख्यातवें भाग अधिक हैं, २. संख्यातवें भाग अधिक हैं, ३. संख्यातगुण अधिक हैं, ४. असंख्यातगुण अधिक हैं। (५) वर्ण की अपेक्षा से१. कृष्णवर्ण-पर्यायों-(एक नारक दूसरे नारक) से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो१. अनन्तवें भाग हीन है, २. असंख्यातवें भाग हीन है, ३. संख्यातवें भाग हीन है, ४. संख्यातगुण हीन है ५. असंख्यातगुण हीन है, ६. अनन्तगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. अनन्तवें भाग अधिक है, २. असंख्यातवें भाग अधिक है, ३. संख्यातवें भाग अधिक है, ४. संख्यातगुण अधिक है, ५. असंख्यातगुण अधिक है, ६. अनन्तगुण अधिक है। इसी प्रकार २. नीलवर्ण पर्यायों, ३. रक्तवर्णपर्यायों ४. हारिद्रवर्णपर्यायों और ५.शुक्लवर्णपर्यायों की अपेक्षा (एक नारक, दूसरे नारक से) षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। (६) गंध की अपेक्षा १. सुरभिगन्धपर्यायों और २ दुरभिगन्ध पर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। (७) रस की अपेक्षा १. तिक्तरसपर्यायों, २. कटुरसपर्यायों, ३. कषायरसपर्यायों, ४. आम्लरसपर्यायों, ५. मधुररसपर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। (८) स्पर्श की अपेक्षा १. कर्कशस्पर्श-पर्यायों, २. मृदु-स्पर्शपर्यायों, ३. गुरुस्पर्श पर्यायों, ४. लघुस्पर्शपर्यायों, ५. शीतस्पर्शपर्यायों, ६. उष्णस्पर्शपर्यायों, ७. स्निग्धस्पर्श पर्यायों, ८. सक्षस्पर्शपर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। १. षट्स्थानपतित का सर्वत्र यह अर्थ जानना चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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