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________________ पर्याय अध्ययन दं. १२. असंख्यात पृथ्वीकायिक हैं, दं.१३. असंख्यात अप्कायिक हैं, दं. १४. असंख्यात तैजस्कायिक हैं, दं. १५. असंख्यात वायुकायिक हैं, दं. १६. अनन्त वनस्पतिकायिक हैं, दं. १७. असंख्यात द्वीन्द्रिय हैं, दं. १८. असंख्यात त्रीन्द्रिय हैं, दं. १९. असंख्यात चतुरिन्द्रिय हैं, दं.२०. असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक हैं, दं.२१. असंख्यात मनुष्य हैं; दं. २२. असंख्यात वाणव्यन्तर देव हैं, दं. २३. असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं दं. २४. असंख्यात वैमानिक देव हैं, अनन्त सिद्ध हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'वे संख्यात और असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त हैं।' दं.१२. असंखेज्जा पुढविकाइया, दं.१३. असंखेज्जा आउकाइया, दं.१४. असंखेज्जा तेउकाइया, दं.१५. असंखेज्जा वाउकाइया, दं.१६. अणंता वणस्सइकाइया, दं.१७. असंखेज्जा बेइंदिया, दं.१८. असंखेज्जा तेइंदिया, दं.१९. असंखेज्जा चउरिंदिया, दं.२०. असंखेज्जा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया, दं.२१. असंखेज्जा मणुस्सा, दं.२२. असंखेज्जा वाणमंतरा, दं.२३. असंखेज्जा जोइसिया, दं.२४. असंखेज्जा वेमाणिया, अणंतासिद्धा, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ"जीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता।" -पण्ण. प.५, सु. ४३८-४३९ ५. चउवीसदंडएसु दव्वाइं पडुच्च एक्कारसठाणेहिं पज्जवपमाण परूवणंदं.१.नेरइयाणं पज्जव पमाणं- . प. नेरइयाणं भंते! केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए, १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३.सिय अब्भहिए, जइहीणे१. असंखेज्जइभागहीणे वा, २. संखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा, ४. असंखेज्जगुणहीणे वा। अह अब्भहिए१. असंखेज्जभागमभहिए वा, २. संखेज्जभागमब्महिए वा, ३. संखेज्जगुणमब्महिए वा, ४. असंखेज्जगुणमब्महिए वा।' (४)ठिईए =सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए ५. चौबीस दंडकों में द्रव्यादि की अपेक्षा ग्यारह स्थानों द्वारा पर्यायों के परिमाण का प्ररूपणदं.१. नैरयिकों के पर्याय का परिमाणप्र. भंते ! नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गये हैं ?" उ. गौतम ! एक नारक दूसरे नारक से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा, १. कथंचित् हीन (नीचा) २.कथंचित् तुल्य, ३. कथंचित् अधिक (ऊँचा) है। यदि हीन है तो१.असंख्यातवें भाग हीन है, २. संख्यातवें भाग हीन है, ३. संख्यातगुण हीन है, ४. असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. असंख्यातवें भाग अधिक है, २. संख्यातवें भाग अधिक है, ३. संख्यातगुण अधिक है, ४. असंख्यातगुण अधिक है। (४) स्थिति की अपेक्षा से-(एक नारक दूसरे नारक से) कदाचित् हीन हैं. कदाचित् तुल्य हैं और कदाचित् अधिक हैं। अधिक न हकदा १. चतुःस्थानपतित का सर्वत्र यह अर्थ जानना चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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