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ब्रम्प संपह (तस्बीए । ) उस ध्यान की प्राप्ति के लिए । (सा) हमेशा । (तसिपमिरवा) उन सीमों में लवलीम (होह) होजो।
क्योंकि सफ, भुत बार व्रत को धारण करने वाला मात्मा उस ध्यान रूपी रप की धुरा को धारण करने में समर्थ होता है इसलिए उस ध्यान को प्राप्ति के लिए हमेशा उन तीनों में लवलीन होत्रो।
प्र.-ध्याता केसा होना चाहिए?
उ०बारह तप, पांच महायतों का पालन करने वाला एवं बालों का मनन करने वाला तपमान, श्रुतवान और प्रतवान आत्मा ही योग्य ध्याता हो सकता है।
प्र०-क्यों?
उ०-वही व्यानरूपी रथ को धुरा को धारण करने में समर्थ होता है।
प्र.-ध्यानी का वाहन बताइये। उ.-ध्यानरूपी 'रथ' ध्यानी का वाहन है। प्र०-ध्यानरूपो रथ में यात्रा करने वाला किस नगर में प्रवेश
.-'मोक्षनगर में प्रवेश करता है। प्र-ध्यान की सिद्धि के लिए आवश्यक सामग्री क्या है?
२०-ध्यान की सिद्धि के लिए-सप, श्रत और व्रतों का परिपालन करना आवश्यक है।
अम्मकार की प्रार्थना सम्बसंगहमि मुणिमासमोलसंचयका पुतुला। सोपपंतु तत्वरेन मिनिमा मणिय ॥५॥
( तमुसुत्तधरेण) अपमानी। {णेमिचंदमुनिणा) नेमिचन्द्र मुनि ने। (जं)जो ( इण यह। (दबसंगह) व्यसंग्रह नामक पम्प । (मणिय ) कहा है। ( सुदपुष्णा ) शास्त्र के माता । (दोससंचयनुवा) समस्त दोषों से रहित । ( मणिणाहा ) मुनिराज । (सोपवेतु ) शुद्ध करें।