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दव्य संग्रह तत्पर है। (जविवरखसहो) यतियों में श्रेष्ठ । ( सो) कह । ( उकमामो ) उपाध्याय परमेष्ठी है। (तस्स ) उसको । ( नमो ) नमस्कार
रत्नत्रय से युक्त, जो आत्मा नित्य धर्मोपदेश देने में तत्सर है मुनियों में श्रेष्ठ वे उपाध्याय परमेष्ठो हैं । उनको नमस्कार है । प्र-मुनियों में श्रेष्ठ कौन है ?
-'उपाध्याय परमेष्ठी'। प्र०-'उपाध्याय परमेष्ठी' कौन कहलाते हैं।
उल-जो रत्नत्रय से युक्त हैं, नित्यधर्मोपदेश देने में तत्पर हैं वे 'उपाध्याय परमेष्ठी' हैं।
प्र०-रलत्रय कौन-से हैं ?
उ.-सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र-ये तीन रत्न हैं।
प्र-उपाध्याय परमेष्ठो का उपकार बताइये।
ज०-भव्य जोवों को सत्य मार्ग का उपदेश देना तथा शिष्यों को पाठन कराना उनका महान उपकार है ।
साधु परमेष्ठी का स्वरूप बसणणाणसमा मा मोक्तारस मोचरितं । सापयदि पिच्चरं सारस मुजी नमो तस्स ॥५४॥
( जो ) जो । { मुणो) मुनि । हु ) निश्चय से ( देसणणाणसमग्गे ) दर्शन और शान से परिपूर्ण ! ( मोक्खस्स ) मोक्ष के । ( मग्गं ) मार्गभूत । (बारितं ) चारित्र को। ( गियासुर) हमेशा शुभ रोवि से । ( सापयदि ) सिद्ध करते हैं । (स ) वह । (ख) परमेष्ठो है । (रासस) जन्हें । ( णमो) नमस्कार है।
जो मुनि निश्चय से दर्शन और जान से परिपूर्ण है, मोक्षमार्म में कारणभूत चारिखको निस्य अधति से किया करते है साघु परमेच्छी कहलाते हैं। उन्हें हमारा मातार हो।